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________________ २९४ मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + ॥द्वादश प्रामृतम् ।। ता कतिणं संवच्छराणं आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमे पंच संबच्छरा पण्णता तंजहा-णक्खत्ते चंद ऊऊ आदिच्चं अभिवडिए ॥ १ ॥ता एतेसिणं पंचण्डं संवच्छरागं पढमस्स क्खत्तसंबच्छरस्स णक्खत्तमासे तीसति मुहत्तेणं अहोरत्तेणं गणिजमाणा केवतिए रातिदिएणं आहितति वदेजा ॥ ता सत्तावीसं रातिदिया एवासिं सत्तस्ट्री भागा राति दयस्त रातिदियग्गणं आहितेति वदेजा ।ता सेणं केवतिए मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेजा ? ता अट्रसए एकणवीसे सत्तावीसंच अहो भगवन् ! कितने संवत्सर कहे हैं ? अहो गौतम ! पांच संक्सर कहे हैं. जिन के नामक. नक्षत्र संमत्सर २ चंद्र संवत्सर ३ ऋत संवत्सर ४ आदित्य संवत्सर और ५ अभिवर्धन संवत्सर ॥१॥ अहो भगवन् ! इन पांव संवत्सर में प्रथम नक्षत्र संवत्सर का नक्षत्र मस नीस मुहूर्न की अहोरात्रि के प्रमान में कितनी अहोरात्रि में पूर्ण होवे ? अहो गौतम ! तीम मुहूर्न की अहोरात्रि के प्रपान से एक है नक्षत्र मास की २७ अहो रात्रि १ भाग ६७ का होवे, एक युग की १८३८ अहोरात्रि है और एक युग के नक्षत्र मास ६७ हैं इस से १८३० को ६७ का भाग देने से २७ अहो र त्रि और शेष २१ रहा. अहो । भगवन ! उस नक्षत्र मास के कितने मुहूर्त हावे ? अहो गौतम ! एक नक्षत्र मास के ८१९ मुहूर्त २५ प्रकाशक राजाब: दुर लाला सुखदेवसहायजी ज्याला प्रसादजी अनुवादक-बालब्रह्म For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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