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________________ 4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी बावट्ठी भागंच सत्तसट्टिया छेत्ता वीसं चुगिया' भागा सेसा ॥ २ ॥ ता एतसिणे पंचण्ह संवच्छराणं दोच्चरस चंद संबच्छरस्स के आदि आहितति वदेजा, ता जेणं पढमस्त चंद संवच्छरस्स पज्जवासणे सेणं दुच्चस्स चंदसंबच्छरस्स आदि अणंतर पुराकडे समए तीसणं किं पजवासिया आहितेति वदेजा ? ता जेणं. तच्चस्स अभि... वडियस्स आदि सेणं दुञ्चस्त चंद संबच्छरस्म पजवासणे, अगंतर पच्छाकडे समए । तं समय चगं चंदे के पुच्छा ? ता पुवाहिं असाढाहिं पुव्वाणं आसाढाणं आगे. इस से प्रथम चंद्र संवत्सर पूर्ण होते समय पुनर्वसु नक्षत्र के १६ मुहू ८ भाग ६२ ये और २० भाग ६७ ये शेष रहे. ॥२॥ अहो अगवन् ! दूसरा चंद्र मंवत्सर की आदि कहां कही है ? अहो गौतम जो प्रथम चंद्र संवत्सर का पर्यवसान है वह दूसरा चंद्र संवत्सर की आदि है. यहां अंतर रहित पूर्वकृत सपय लेना. अहो भगवन् ! इस का पर्यवसान कैसे कहा ? अहो गौतम ! जो तीसरा अभिवर्धन मंवत्सर की आदि उस से अनंतर पश्चातकन समय में दूसरा चंद्र संवत्सर का पर्ववसान है. अहा भगवन् ! दूसरे चंद्र संवत्सर के चरिम समय में चंद्र कौन से नक्षत्र की साथ योग करता है? अहो। गौतम ! उस समय चंद्र पूषाढा नक्षय की साथ योग करता है. यह सात मुहूर्त ५३ भाग ६२ ये ..प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसदाजी. trnnnnnnnnnama । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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