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अर्थ
488* सप्तदश चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र षष्ठ उपाङ्ग ++
सत्तमुत्ता तेवणं वाट्टी भागा मुहुत्तर वात्रट्टी भागंच सत्तस या छेत्ता एगयाली ती सं या भागा सेसा ॥ तं समयं चणं मूरे के कुच्छा ? ता पुण्णवसुणा पुण्णवसुनं छीतालसिं मुहुत्ता पष्णतीसंच बावट्टी भागा मुहत्तस्स वावट्ठि भागं च सत्तसट्टिया छेत्ता
चुणिया भागा सेसा ॥ ३ ॥ ता एतेसिणं पंचन्हं संवच्छरणं तश्चस्स अविडियस के आदि आहितेति वदेजा? ता जेणं दो बस्स चंद संच्छरस्स पज्जवासणे सेनं तच्चस्स अभिनास्म आदि अनंतरंपुरेकडे समए । तीसेणं किं पज्जवासि
४१ भाग ६७ ये इतना शेष रहे तब दूसरा चंद्र संवत्सर पूर्ण होवे. अहो भगवन् ! उस समय सूर्य कौनसे सत्र की साथ योग करता है ? अहो गौतम ! उस समय पुनर्वसु नक्षत्र की साथ सूर्य योग करता है. यह नक्षत्र ४२ मुहूर्व ३५ भाग ६२ ये और ७ चूराणये भाग ६७ ये शेष रहे तब सूर्य की { साथ चंद्र नक्षत्र योग करता है और सूर्य नक्षत्र ५७० मुहूर्त २४ माग ६२ या शेष रहे तब दूसरा चंद्र संक्रस संपूर्ण होवे इसकी विधि पूर्वोक्त जैसे जानना. यहां २४ से गुना करना ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! तीसरा अभिवर्धन संवत्सर की कहां आदि कही है ? अहो गौतम ! जो दूसरा चंद्र संवत्सर का पर्यवसान है इस से अनंतर पूर्व कृत समय में तीसरा अभिवर्धन संवत्सर की आदि है. अहो भगवन् ! तीसरा अभिधन संत्सर का पर्यवसान वहां कहा है ? अहो गौतम ! जो चौंथा
चंद्र संवत्सर
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44 इग्यारका पहुडा 18+ 4254
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