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दुहतोविणे सूरा जुत्ता जोगेहिं दुहतोवियणं चंदेसूर जुत्ता जोगेहिं मंडलं एगेयसहस्सेणं अट्ठाणउति सएहिं छत्ता इच्चे से णक्खत्ते खेत्ते परिभागे णखत्ते विजयवखत्ते पाहृडंति आहितेति तिमि ॥ इति दसम पाहुस्स बवि।सं पाहुडं सम्म
॥ १० ॥ २२ ॥ इति 'दममं पाहुई सम्मत्तं ॥ १० ॥ * + दोनों गृह नक्ष सूर्य की साथ योग युक्त होपे. गृह नक्षत्र दोनों चंद्र सूर्य की साथ योग युक्त होवे, एक मंडल के एक लाख अट्ठ गु से भाग ५६ नक्षत्रा के जानना, क्षत्र के विजय क्षेत्र का पाहुडा भगवान्ने कहा है. यह सत्य है. यह चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र में दशवा पाहुड! का बावीसका अंतर प.हुड! संपूर्ण हुग. ॥ १० ॥ २२ ॥ यह दशा पाहुडा समाप्त हुवा ॥ १० ॥
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अनुबपक-पालव्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
• अक शक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्यालाप्रमादजी •
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