SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र animararmirarammmmmmmmm 48 सहाश-चद्र प्रज्ञप्ती मूत्रपठ-उपार + समावण्णे भवति, तयाणं इमेति चंदेगति समावण्णे भवति, ता जयाणं इमे सूरिए गति समावण्णे भवति, तयाणं इयरेवि सरिए गति समावण्णे भवइ, जयाणं इयरे सरिए गति समावण्णे भवति,नयाणं इमेवि सरिए गति समावष्णे भवति ता जयाणं इमे चंदे जुत्ते जोगेणं भवति तयाणं इयरेवि चंदे जुत्त जोगेणं भवति,जयाणं इमे चंदे जुत्त जागेणं भवति तयाणं इयरेवि चंदे जुत्ते जोगेण भवति, एवं सरिए गहे णखत्ते ॥ सदाविणं चंदे जुत्ता जगेहं मदाविणं सूर जुत्ता जोगहि सदाविणं गहा जुत्ता जोगहि सयाविणं णक्खता जुत्ता जोगहि दुहताविणं चंदा जुत्ता जोगेणं या गति समापम होवे सब भरतक्षेत्र में भी चंद्रमा गति समापन होये. जब भरत क्षेत्र में सूर्य तपता हुवा गति समापन होवे तब इरक्तक्षत्र में भी तपता हुवा सूर्य गति समापन हाये, जब इरवतक्षेत्र में तपता हुवा सूर्य गति समापन हो तब भरतक्षत्र तपता हुवा सूर्य गति समापन होवे. इस से जब भरतक्षेत्र में चंद्रा याग युक्त होने तब इसतक्षेत्र में भी चंद्रमा योग युक्त होवे और जव इरवत क्षेत्र में चंद्र योग युक्त होवे नप यहाँ भरतक्षेत्र में भी चंद्र योग युक्त हावे. ऐसे ही मूर्य का आलापक कहना. गृह का व नक्षत्र का आलापक भी वैसे ही जानना. सदैव चंद्रमा योग युक्त होवे सदैव सूर्य योग युक्त होवे, सदैव गृह योग युक्त होवे, और सदै। नक्षत्र योग युक्त होवे, गृह व नक्षत्र दोनों चंद्र की साथ योग युक्त होवे, दशा पाहुडे का गरी वा अंतर पाहुना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy