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सूत्र
अर्थ
488- सप्तदश चंद्रमइति सूत्र- षष्ठ उपाङ्ग 4984
रादियंग्गोणं आहितेति वजा ? तातिष्णिछात्रट्ठी रायंदियसए रायदियगोणं आहिएति वएज्जा॥४॥ ता एएणं अद्धाए सूरिए कइ मंडलाइ चरंति ? कइ मंडलाई दुक्खुत्तो चरइ, कइमडलाइ एगक्खत्तो चरइ ? ता चुलसीति मंडलसयं चरइ, बायासीयंच मंडलसयं दुक्खुत्तो चरइ, तजहा निक्खममाणेचत्र पत्रिसमाणेचेत्र दुवेय खलु मंडलाई एगक्खुत्तो
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और
दिन १८३० है. इस से १८३० को ३० का भाग देने से एक ऋतु के रात्रि दिन ६० होने उस से ३० मुहूर्त का गुनाकार करने से १८०० मुहूर्त होवे, और एक ऋतु के मास दो हैं तो १८०० को दो का भाग देने से ९०० होवे, अर्थात् एकमास के ९०० मुहूर्त इस का यंत्र. { ॥ ८ ॥ अव गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि जब सूर्य सब से आभ्यंतर मांडले में से नीकलकर सबक बाहिर के मडले में चाल चले तथा सबके बाहिर के मांडले से नीकलकर सब के आभ्यंतर मडले में चाल चले तब यह काल कितने रात्रि दिन होवे ? यहां तीन सो छासठ ३६६ रात्रि दिन का काल होवे ॥ ४ ॥ प्रश्न — पूर्वोक्त काल में सूर्य कितने मांडले पर चलता है, कितने माडले पर एक वक्त चलता है। और कितने मांडले पर दो वक्त चलता है ? उत्तर - सामान्य प्रकार से सूर्य १८४ माडले पर चलता जिस में से १८२ मांडले पर सूर्य दो वक्त चलता है, और प्रथम व अन्तिम मांडले पर एक वक्त चलता { है; क्योंकि बचिके १८२ माडले पर सूर्य का आना व जाना होने से दो वक्त चलता है और प्रथम व
++ पहिला पाहुडे का पहिला अंतर पाहुडा
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