________________
जेट्टे अंतेवासी इंदभूई णाम अणगारे गोयमगोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव पजवासमाणे, एवं क्यासी-ता कहते महत्ताणं, वुड्डोवुड्डीय अहिएति वएजा? ताअट्ठसए ऊगूणवीसे मुहुत्तसए सत्तावीसंच सत्तसट्ठी भागे मुहुत्तस्स अहिएति वएज्जा ॥३ ॥ ता जयाणं ते सरिए सम्वन्भंतराओ मंडलाओ सव्व वाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, सववाहि
राओ मंडलाओ सन्वन्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ एसणं अवाकेवतियं *इन्द्रभूति नामक अनगार यवात् पर्युपामना करते हुवे श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास आकर इस प्रकार
प्रश्न पुछने लगे कि अहो भगवन! नक्षत्रमाम, मर्यमास,चंद्रमास तथा ऋतपास के कितने मुहर्न की हानि-द्धि कही है अर्थात् किस प्रकार हानिवृद्धि होती है? अहो गौनम! १ नक्षत्रम.स के ८.९१५ की हानिवृद्धि कही है। युग के नक्षत्रपाम ६७ हैं और युग कि दिन१८३० इम १८३० को चंद्रमास ६७ के भाग दन से एक माम के२७ दिन ९ मुहर्त और शेष२७ भाग रहता है. इन को तीस मुहुर्न की साथ गुनाकार करनेसे ८१९१७ मुहूर्त हावे. ऐसे ही मूर्यमास के ९१५ मुहुर्न हैं. युग के सूर्यमास ६० हैं और दिन १.८३. उस का ६० का भाग देने से एक मास के ३०॥ दिन होवे और इन को तीम मुहूर्त की साथ गुनाकार करने से एक माम के ११५ मुहूर्त होये. चंद्र मास के ८८५ मुहूर्न होवे. युग के चंद्र मास ६२ होवे और दिन
११८३ . होवे इसके ६२का भाग देने से एक मास के २२॥ रात्रीदिन व बासठीया एक भाग होबे, उस |Fसे तीस मुहूर्नका गुनाकार करने से८८५ : मुहूर्न होते है. ऋतुमास९०० मुहूर्त का होता है. युगकी अनु३ है।
__ अनुगदक- लबमचारीमुनि श्री अमोलक प्राषिजी
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखद वमहायजी ज्वालाप्रसादजी.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org