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________________ सूत्र अर्थ चन्द्रप्राप्ति सूत्र षष्ठ उपाङ्ग 48 तेणं का लेणं तेणं समएणं महिलाए णामं णयरीए होत्या वण्णओ तीसेणं महिलाए णामं णयरीए बहिया उत्तर पुरात्थिमे दिसीभाए एत्थणं मणिभद्दे नामईए होस्था चिराइए वण्णओ || १ | तीसेणं महिलाए णयरीए जियसत्तू नामं राया धाराणि देवी वणओ || तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे परिसाणिग्गया, धम्मोकहिओ परिसा पडिगया || २ || तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बाहिर ईशान कौन में नामक यक्षका वर्णन उस काल चौथे आरे में, चरम जिनेश्वर भगवंत महावीर स्वामी विचरतेथे उस समय में मिथिला नामकी नगरी थी, उस का वर्णन उबवाइ सूत्र से जानना. उस मिथिला नगरी के ( मणिभद्र नामक यक्षका चैत्य-उद्यान था. उसका सत्र वर्णन उवबाई सूत्र में जैसे पूर्णभद्र कहा वैसे कहना. उस मिथिला नगरी में जितशत्रु राजा राज करता था. उन को धारणी नाम की राणी थी. इन दोनों का वर्णन उववाइ में जैसे कूनिक राजा का कहा वैसे कहना (ईशान कौन में मणिभद्र नामक उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे, परिषदा आइ, धर्म कथा सुनाई, परिषदा, पीछीगड़ वगैरह सब कथन उबवाइ सूत्र में कहे अनुसार जानना ॥ २ ॥ उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवन महावीर स्वामी के ज्येष्ठ शिष्य गौतम गौत्रिय, सातद्दाथ की अवगाहना वाले || १ | उस मिथिला नगरी की Jain Education International For Personal & Private Use Only *** पहिला पाहुडे का पहिला अंतर पाहुडा १३ www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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