________________
अमोलक ऋषिजी +
मय अज्झयगा, मुहुत्ताणं गामधेआई ॥ १७ ॥ दिवसराईयवुत्ता, तिहिंगुत्ता भोय. . णागिय ॥ आइच्च चार मासाय, पंचसंवच्छरातिय ॥ १८ ॥ जोइसिय दाराइ, मा
णक्खत्तीवजयतिय ॥ दसमे पाहुडपए बावीस पाहुडपाहुडा. ॥ * ॥ कथन है. १३ वारवे अंतर पाहुडे में आठाइस नक्षत्र के अधिष्टायफ देवों के माम कहे हैं १३ तेरवे , बंदर पाहुडे में एक अहो रात्रि के तीस मुहूर्म के नाम कहे हैं. ॥ १७॥ १४ चौदवे अंतर पहुडे में एक पक्ष के पन्नरह दिन व रात्रि के नाम कहे हैं १५ पन्नरहवे अंतर पाहुडे में पनर तिथिओं के नाम कहे हैं? १६ सोलहवे अंतर पाड मे अठावीस नक्षत्र के गोत्र कहे हैं १७ सत्तरचे अंतर पाहुडे अठाइस नक्षत्र में भोजनका कथन कहा है १८ अठारखे पाहडे में सर्य चंद्र चलने के लक्षण कहे है। १९ उनीस वे पाहुडे में एक संवत्सर के कितने मास उन के लोकिकवलाकोत्तर नामकहे हैं. बीसवे अंतर पाहुडे में पांच संवत्मर की वक्तव्यता कहीं है,॥१८॥इक्कीसवे अंतर पाहुडे में अठावीस नक्षत्र जिंसद्वारवाले है उसका कथन है. मे अन्यतिथि की प्ररूपना रूप पाच पडिवृतियों कही है-और २२ बावीसमें पाहुरे बाबोसा नक्षत्र चद्र मुर्यकी साथ जोग जोडकर चले उसका निर्णय कहा है इन बावीस पाहुडेमें बारह अंतर पाहुंडमें अन्य तीर्थीकी प्ररूपणा रूप दश पडिवृति कही हैं ॥ १९ ॥ दश से सोलह पहुडे तक . तर पाडे व पडिवृति नहीं है, सतरवे पाहुडेमें पच्चीस पडिवृत्ती, अठारवे पाहुडेमें पच्चीस परिवृति उभिस ये पाहमें बरह परिवृति, और बीसचे पाहुडमें चार पडिवृति. सत्र मिलाकर ३५७ पडिवृति होतीहै. उस कार चंद्र प्राप्ति के पाहुई, अंतर पाहुरे व पडिवृति का अधिकार हुआ,
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजीवाला प्रसादजी
बनुवादक-चालय
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org