________________
-
विणमासीय संण्णीचाएय संठिती ॥ १६ ॥ तारंगाचण्णेषाय चंदमग्गतियावरे,देवा
--
अंतर पाहुडे में चंद्र की माथ युगकी आदि में प्रातःकाल व संध्या काल में नक्षत्र का योग होने उस का कथन है ५ पांचवे पाएड में कुल, उपकुल व कुलोपकुल नक्षत्रों का चंद्र की साथ योग कहा । ६ छ8 अंतर पाहुडे में पूर्णिमा की वक्तव्यता कही है, पूर्णिमा को जो नक्षत्र योग मीलावे वे कुल उपकुल व कुलोपकर का वर्णन है. वैसे ही अमावास्या की तीथि का जानना-युग का ६२ पूर्णिमा ६२१ । अमावास्या मीलाकर १२४ पर्व हैं. उत्तरही नक्षत्र का चंद्र की साथ योग होता है. मातवे अंतर पाहुडे में जो मास की पूर्णिमा में जिस नक्षत्र का चंद्र की माथ योग होता है वही नक्षत्र का किस मास
की अमावस्या को चंद्र की साथ योग होव. यह कथन है. ८ आठ वे अंतरपा हुडे में अठावीस "नक्षत्र के संस्थान कहे . ॥१६॥२ नववे अंतरपा हुडे मे अठाइस नक्षत्र के तारे कहे हैं १०
दशने अंतर पाहडे में जो२नक्षत्र जिम मास की अहो रात्रि पूर्ण करे व जो तिथि में पौरखी आवे उस का कथन है ११ अग्यारहवे पाहुडे में चंद्र के मंडल में बक्षत्रों के मंडल से कहते है, चंद्र के जिस मांड
पर नक्षत्र हैं. और जिस मांडले पर नक्षत्र नहीं हैं. छत्र पर छत्र होवे सूर्य चंद्रके मंडल में नक्षत्रों के रमंडल संक्रमते है, सूर्य चंद्र के विके कंपन क्षेत्र, सूर्य मंडल पर चंद्र मंडल कितने भाग से माश्रित और .] उचर दक्षिण नीकलता हुमा, चंद्र मंडल सूर्य मंडल की बीचमें तीर्छ अंतरा है. उसका
सप्तदश-चंद्र प्रज्ञप्ति सत्र षष्ठ-उपाङ्ग
पाहुडा
8
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org