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अर्थ
१० अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री ओमालक ऋषिजी +
संवछरे पंचविहे पण ते जहा गक्खन्ते, चंदे. उऊ, आइन्च्चै, अभिवड्डिए ॥ ४ ॥ ता लक्खण सवच्छरे पंचहि पण्णत्ते तंजहा - नक्खन्ते चंदे, उऊ, आइन्च्चे, अभिवड्डिए ता लक्खणं सवच्छरे पंचविहे लक्खणे पण्णत्ते तंजहा-समगं नक्खता जोगं जोएति समगं उऊ, परिणमंति, णवन्हं नातिसीय बहुउदओ होति णक्खते ॥ ५ ॥
सासे
दिन
इस को बारह गुने करने से ३५४ ये होने पांचवा अ निवत्सर के छब्बीस पर्व कहे हैं, इस में चंद्रमास तेरह हैं अधिक मास बढा. चंद्रमास के दिन २९ हैं. इस कों तेरह से गुणाकार करने से ३८२ का अभिवर्षन सवत्सर हावे. यहां अधिक मास क्यों बढा? उत्तर - प्रथम अधिक मास के अंत से तीन सूर्यमास में एकतीस चंद्रमास होवे. यों युग के पांच संवत्सर कहे हैं. और एक युग के १२४ पर्व होते. ॥ ३ ॥ प्रमाण संवत्सर पांच प्रकार का कहा हैं जिन के नाम- १ नक्षत्र संवत्सर २ चंद्र संवत्सर ३ ऋतु संवत्सर ४ सूर्य संवत्सर और ५
अभिवर्धन संवत्सर, अब पांचों नक्षत्र के दिन का स्वरूप कहते हैं. नक्षत्र संवत्सर के ३२७ दिन हैं, चंद्र संवत्सर के ३५४ दिन हैं, ऋतु संवत्सर व आदित्य संवत्सर का कथन कहते हैं. दो घडि का एक
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युग संवत्सर कायंत्र.
मास पर्व
दिन
भाग ६२
१२ २४
३५४ | १२
१२
२४
३५४ १२
१३ २६
३८३ | ४४
१२
२४
३५४ १२ ३८३ ४४ ६२ १२४१८३०|
१३
२६
मंत्र सर
के नाम
चद्र
चंद्र
अभिवर्धन
चंद्र
५ अभिवर्धन
जोड
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• प्रक. शक राजा वहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्यालाममादजी •
२४०
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