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। समग पुणिमासिं जोएति, विसमचारिंणखत्ता ॥ कडओ बहुउदओया, तमाहु सं2 बच्छरं चंदं ॥२॥ विसमं पवालिको परिणमंति अणुउसदति पुप्फफलं।। वासं न सम्म
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उनी सूत्रष-उपाङ्ग
पुहूर्न और तीम मुहूर्त की एक अहोरात्रि, पन्नगह अहे रात्रि का एक पक्ष, दो पक्ष का एक मास,दो मास की एक ऋतु, और छ ऋतुका एक संवत्सर अर्थात, बारह मास का एक संवत्सर होता. यहां संवत्सर में ३६० अहोरात्र पूर्ण होवे. ऋतु संवत्सर में वसंनादिक ऋतु लोक में प्रसिद्ध हैं. ऋतु संवत्सर के अन्य भी । नाम कह हैं-१ कर्म संवत्सर और २ सेवन संवत्मर. लौकिक व्यवहार के प्रधानपणा से कर्म संव-ई सर और कर्म में प्रेरणा करने के प्रध नपना से सेवन संवत्सर. थाहित्य संवत्सर सो जितने काल में छ ऋतु परिपूर्ण करे उतने काल को आदित्य संवत्सर कहते हैं. यह आदित्य मंवत्सर ३६३कादिन का होता है. है लोक में ६० अहोराधि प्रमान प्रवृडादि ऋतु प्रसिद्ध हैं. परंतु निश्चय में ६१ अहारात्रि प्रमाण ऋतु जानना. कर्म संवत्सर ३६० दिन का है, आदित्य संवत्सर ३६६ का दिन का है और अभिवर्धन संवत्सर ३८३ दिन का है. इस के मास का गाथा द्वारा वर्णन करते हैं. आइच्चो खलु मासो तीस अद्धं च साइ दिवसा ॥ चंदो एगूणतीस । बासट्ठीया भाग बत्तीसं ॥१॥ नक्तत्तौ खलु मामो। सावीन भो अहारत्तं ॥ अंसाय एकवीसा ॥ सत्तछवीकएणं छेएणं ॥२॥ अभिवादे उय मासों। एकतीसं-१61 भने अहोरक्षा ॥ भागा सबभेगवीसं । चञ्चीस सयएणं ॥ ३ ॥ अर्थ-आदित्य माम ३०॥ दिन का है,
488 दशा पाहुडे का बीसवा अंतर पाहुदा 487
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