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________________ तत्थणं जेते चंद मंडला जेणं समा आदिच्च विरहिया. तेणं पंच तंजहा-छट्टे चंद मंडले, सत्तमे चंद मंडले, अट्ठमे चंदमंडले. गवमे चंद मंडले दसम चंद मंडले इति दसमस्स पहुडस्स एकापसमं पाहुडं सम्मत्तं ॥ १०॥ ११॥ * * ता कहते देवयाणं णामधेजा आहिति वदेजा ? एतेनिणं अट्ठाविसाते णक्ख त्ताण अभिए णक्खत्ते बम्हदेवयाते, पण्णत्ते सवणे णक्खत्ते विष्णुदेवयाते पण्णत्ते, क्योंकि सूर्य के मंडल २ पर दो २ योजन का अंतर है. और चंद्र का दूसरा मंडल ११ भाग ६१ या और ४ भाग सातिया निकलता है, इस से दो योजन में से यह याद करते १ योजन ४१ भाग ६१ या और तीन भाग सातिया रहे. इसी तरह चंद्र का जितना मार्ग निकालना होवे उस मार्ग को १५५५१ से गणतार करके ११९० से भ ग देना. जो आवे सो सूर्य भाग जानना. और शेष रहे सो चुरणीय भाग जानना. यो दशवा पाहडे का इग्यारहवा अंतर पाहुडा मंपूर्ण हुवा ॥ १० ॥११॥ अहा भगवन् ! नक्षत्र के अधिष्टायक देवों के नाम कैसे कहे ? अहो शिष्य ! इन अहावीस नक्षत्रों में से अभिजित नक्षत्रका ब्रह्म देवता अविष्टायक है, २श्रवण नक्षत्रका विष्णु देवता, वो जैसे जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में है कहा वैसे ही कहना अर्थात् ३ घन्ष्टिाको वसुदेव ४शतभिषा का वरुणदेव ५ पूर्वाभाद्रपद का अर्जदेवउत्तरा भाद्रपद का अभिवर्धनदेव रेवति का पुष्यदेवट अश्विनी का अश्वदेवरभरणी का जमदेव १० कृत्तिका काम wwwmanww 4842दशना पाहड का करहा अंनर पाडा 41 - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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