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48 अनुावदक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एवं जहा अंबूद्दीवपण्णत्तीए जीव उत्तरासादा णक्खत्ते विसदेवषाए यण्णत्ते 'दसमस्त दुवालसमें' पाहुडे सम्मतं ॥ १० ॥ १२ ॥
मधिजा आहितेति वदेजा ? ता एगमेगस्सणं अहोरत्तस्स तसिं मुहुत्ता पण्णत्ता तंजहा-रोद्दे, सिते, मिते, बाऊ, सुट्ठिए, तब अभिचंदे, माहिंदे, बल, पम्हें, बहुसव, चंव ईसाणे ॥ १ ॥ तटुंबं, भावियप्पा, वेसमणे, वावरेय, अग्निदेव, ११ रोहिणी का प्रजापति देव, ६२ मृगशर का सोम देव, १२ आर्द्रा का रुद्र देव, १३ पुनर्वसु का | आदित्यदेव १५ पूण्य का वृहस्पतिदेव १६ अश्लेषाका सूर्यदेव १७ मघा नक्षत्रका पित्रदेव १८ पूर्वाफाल्गुनी का भग १९ उत्तराफाल्गुनी का अर्जमदेव २० हस्त नक्षत्र का सवितादेव २१ चित्रा नक्षत्र का त्वष्टादेव२२ स्वाति नक्षत्रका वायुदेव २३ विशाखाइ अज्ञीदेव २४ अनुराधा का मित्रदेव २५ ज्येष्ठा का इन्द्रदेव २६ मूलका नैऋतु २७ पूर्वाषाढा का जलदेव और२८ उत्तरापाढा का विम्ब नामक देष है. उक्त अट्ठावीस नक्षत्र के अट्ठावीस [ अधिष्ठायक देव कडे. यह दशवा पाइडे का बारहवा अंतर पाहुडा संपूर्ण-हुवा ॥ १० ॥ १२ ॥
अब तेरहवा अंतर पाहुडा कहते हैं. अहो भगवन् ! मुहूर्त के नाम किस प्रकार कहे हैं ? अहो शिष्य ! एक २ अहोरात्र के तीस मुहूर्त कहे हैं. जिन के नाम-१ रुद्र, २ श्रयान् ३ मित्र, ४ वाय, ५ मुस्थित, ६ अभिचंद्र, ७ माहेन्द्र, ८ वलकन, ९ पूष्य अथवा पद्म, १० बहुसत्य, ११ ईशान, १२
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• प्रकाशक - राजवहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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