SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्खत्वा जेणं जक्खत्ता सया चंदस्स दाहिणेणं जोगं जोएति ॥१॥ अस्थि-ई षष्ठ-उपाङ्ग + विशाखा और ७ अनुराधा. उक्त मान नक्षत्र अपने २ मांडले पर चलते हुए चंद्र की साथ उत्तर दिशाई में रहकर अथवा दक्षिण दिशा में रहकर अथवा नक्षत्र भेद कर योग करते हैं. इन अट्ठारीस नक्षत्र में से ऐसे नक्षत्र हैं कि जो दक्षिण दिशा में रहकर अथवा प्रमहर्षकारी नक्षत्र भेद कर योग करते है वे #दो हैं जिनके नाम-पूर्वाषाढा ब उत्तराषाढा. सव से बाहिर के मांडले पर योग युक्त होकर जो योग करते हैं उन को चार २ तारे कहे हैं, जिन में से पूर्वाषाढा के क्षे तारे सब से बाहिर के परचे मांडले पर, और दो तारे सब से आभ्यंतर मांडले पर. अत्तराषाढा नक्षत्र के दो तार आभ्यंतर मांडले पर और दो तारे। बाहिर के मांडले पर. उक्त दोनों नक्षत्र सदैव दक्षिण दिशा में रहे हुवे अथवा नक्षत्र भेद कर योग करते हैं. इन अट्ठावीम नक्षत्राम से एने नक्षत्र हैं कि मो चंद्रमाकी साथ सदैव प्रमहर्ष कारी योग करो हैं, वह एक है. जिस का नाम ज्येष्टा कोई ज्येष्ठा नक्षत्र को दक्षिण उत्तर प्रप.पकारी रोग मानते ॥ १॥ अहो । भगवन् ! चंद्र के कितने मांडल कहे ? उत्तर-चंद्रमा के पनाह मांडले कहे हैं. जि .पांव मांडले जम्बूद्वीप और दश अंडले लवण समुद्र में चंद्रमा के प्रथम मांडले को अंदर का चरित एक सोई अस्सी योजन जम्बूद्वीप में अवगाहे और चंद्रमा के पनरहवा मांडले का बाहिर का चरिमांत लवण समुद्र वीन सोवीन योजन एकसटिए अहतालीस भाग अचमाई. इन पसरह मांडले में से ऐसे मांडलो है। 488 देवा पाहुडे का इग्यारवा अंतर पाहुडा 488+ सदश-चंद्रप्रज्ञाशा ... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy