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अथ
अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
कि जो नक्षत्रों से अधिराहते हैं अथाई उन पर सदैव नक्षत्र रहते हैं. ऐने भी मॉडले हैं कि जो सदै नक्षत्रों से विरह वाले हैं अर्थात् नक्षत्र नहीं आते हैं, ऐसे भी चंद्र मंडल हैं कि जहां पर सूर्य व चंद्र के मात्र सामान्य हैं. और ऐसे भी चंद्र के मंडल हैं कि जो सदैव सूर्य मंडल से विरह वाले हैं. अहो भगवन् ! इन पनरद्द चंद्र मंडल में से कौन से पंडल ऐसे हैं कि जो सदैव नक्षत्रों वाले है यावत् कौन चंद्र मंडल ऐसे हैं कि जो सदैव सूर्य मांडले से विरहित है ? इन पनाह चंद्र मंडल में में ऐसे आठ मंडल है कि जो सदैव नक्षत्रोंवाल है जिनके नाम-१ पहिले चंद्र मंडल पर बाहर नक्षत्रों हैं, २ छटे चंद्र मंडल पर एक नक्षत्र है, ४ सात चंद्र मंडल पर दो नक्षत्रों नक्षत्र है, दश चंद्र मांड पर एक नक्षत्र है, ७ अन्यार के चंद्र पन्नरये चंद्र मांडले पर आठ नक्षत्र हैं. इन पन्नरह चंद्रमा के मांडले विवाने हैं के सात हैं जिनके नमः १ दूसरा, २. चौथा, ३ तेरहवा, और ७ चौदहवा. इन पन्नरह चंद्र मांडल में से जो नक्षत्रों सूर्य होने से चार हैं. जिन के नाम १ प्रथम, २ दूसरा, ३ अभ्यारहवा, और पन्नरहवा. इन चार मांडले पर नृ शशी नक्षत्र के शिर है अर्थात् छत्र पर छत्र है. जो चंद्र मंडल सदैव सूर्य के मंडल से विहित हैं वे पांव हैं. जिनके नाम-१ हे चंद्र मंडल की सूर्य मंडल नहीं है, २ सात चंद्र मंडल नीचे सूर्य मंडल नहीं है, ३ आउने चंद्र मंडल नीचे सूर्य मंडल नहीं है, ४ नववे चंद्र मंडल गीचे सूर्य मंडल
रहा,
तीसरे चंद्र मंडल पर दो नक्षत्र है, ४, ५ आठ चंद्र मंडल पर एक मांडले पर एक नक्षत्र है, और में से जो नक्षत्र से सदैव पांचवा, ४ वा ५ चंद्र के नक्षत्रों समान्य
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प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी क्वालाप्रसादाजी ०
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