________________
12
ता कहते चंदमग्ग आहितति वदेजा ? ता ए सिणं अट्ठाविसाए गक्खत्ताणं अत्थि
२१४
दिशा में रहकर योग करते हैं अथा प्रमहर्ष कारी-अर्थात् चंद्रमा उस नक्षत्र को भेद कर योग करे और कितनेक नक्षत्र ऐसे हैं कि जो चंद्र की साथ सदैव पपहर्ष करी योग करे अर्थात् चंद्रमा उस नक्षत्र को भेद कर योग करे. अहो भगवन् ! इन अट्ठावीस नक्षत्रों में से कौनसे नक्षत्र मदैव दक्षिण दिशा में रहकर योग
करे यावत् कौन से नक्षत्र दक्षिण दिशा में अथवा प्रपहर्ष कारी योग करे कौन से नक्षत्र सदैव प्रमहर्ष 5कारी योग करे ? इन अठ्ठावीस नक्षत्र में से जो नक्षत्रों सदैव दक्षिण दिशा में रहकर योग करते हैं वे छ
नक्षत्र हैं, जिनके नाम-१ मृगशर ३ आई ३ पूष्य ४ अश्लेषा ५ हस्त और ६ मूल. ये ६ नक्षत्रों चंद्रमा के पास मंडल व अपने ठिये मंडल पर चलते हुए चंद्रपा की साथ योग करे. अब जो नक्षत्र सदैव चंद्रमा की उत्तर दिशा में रहकर योग करते हैं ये बारह नक्षत्र हैं जिनके नाम १ अभिजित २ श्रवण ३॥ धनिष्टा ४ शतभिषा ५ पूर्वाभाद्रपट ६ उत्तगभद्राद ७ रेवति ८ अश्विन १ भरणि १० फागुन ११ उत्तरा फाल्गुनी और १२ स्वाते. ये पारह नक्षत्रो चंद्र के प्रथम मांडले व सत के जयप पांडर पर चलते हुए चंद्रमा की साथ उत्तर दिशा में रहकर योग कम्त हैं, इन अट्ठास नक्षत्रों में स एसे नक्षत्र हैं
कि जो दक्षिण दिशा में रहकर अथवा उत्तर दिशा में रहकर अथवा प्रमहर्ष करी अर्थात् नक्षत्र भेद करे 12योग करते हैं, वे सात नक्षत्र हैं जिनके नाम-१ कृत्तिका, २ रोहिगी ३ पुर्यमु. ४ मा ५ चित्रा ६)
जवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
.प्रकाशक-राजाबदुर सिल सुखदनमहाय। आलाप्रसादजे .
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org