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________________ है. दोपयाति पोरिति भवति ॥ इति दसम पाहुडस्स दसम पाहुडं ॥ १०॥ .. ॥ * it चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र-पष्ठ उपा, नीलिए चार भाग की एक २ तीथि में हानिवृद्धि होवे. दृष्टांत-पंचासी वे पर की पाची तीथी में कितन पांवकी पौरूषा होव? ८४ का १० ग्रमा करन २०. होय, इसमें पांच ताथी के पाच पिलाना जिस मे १२१८ होवे, उसे १८६ का भाग देने से का भाग हुवा, इसमें अयन व्यतात हुई. और 3 सातवी अयन के १.४१ दिन शेष रहे. सातकी अयन दक्षिणायन जानना. इस से १४९. तीथी को चार से गुणा करते ५९६ हुवे और उ.३१ का भाग देने ११ आया शेप७ रहा-इसे ११ अंगुल व एक तीमए ७ भाग की वृद्धि करना. इस में दो व मीलाने से तीन पाँच सात अंगुल व एकतीसए मात भाग की पौरूपी होये. यह दक्षिणायन जानना. यह दशवा पाहुडा कादशा अंतर पाहडा संपूर्ण हुआ ॥१०॥१०॥ अब दशवा पाहुडा का अग्यारह अंतर पाहुड कहते है. अहो भगान् ! आपके मत किस तरह चंद्र मार्ग कहा? अर्थात् सूर्य नक्षत्र रहित दक्षिण उत्तर प्रमर्ष कारी योग चंद्रमंडल गत परिभ्रमण रूप मंडल मार्ग कहा ? उत्तर-अहो शिष्य ! ऐस नक्षत्रो हैं कि जो सदैव चंद्रमा की माथ दक्षिण दिशा में: हए योग करते हैं. एने नक्षत्र हैं कि जो सदैव चंद्रमा की साथ उत्तर दिशा में योग करते है, अथ कितनेक ऐसे नक्षत्र हैं कि जा चंद्रमा साथ क्याचित् दक्षिण में रहकर काचिन् उत्तर में रहकर अथवा प्रमहर्षकार। अर्थत् चंद्रमा नक्षत्र भेद कर योग करे, कितनेक नक्षत्र ऐसे हैं कि जो सदैव दक्षिण दशा पाहड का इग्यारवा अंतर पाहूडा 48 । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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