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13 तास चणं मासंसि बड्डीए ॥ ४ ॥ समचउरंस संठियाए गोह परिमंडलाए सकाय. सत्र
मणुरंगिणीए छायाए सरिय अणुपरियति तस्सणं मासस्प्त · चरमदिवसे लेहट्ठावि वृद्धि होती है. और उत्तरायण में चार पांच में हानि हेली है. ॥ ४ ॥ श्रावण मास की प्रथम प्रतिपदा अर्थात् युग आदि व श्रावण माम के आग दिन यम के अंत अपड शुदी १५ को दो पांव की पौरुषः हाने, तत्पश्चात् प्रतिम स क अंत में चार २ अंसल की वृद्धि हवे. अर्थात श्रवण शुदी १५ कोई दो पांच और चार अंगुल की पौरपी हाव ॥ ७ ॥ एक निधि में ए नाये चार भाग की दक्षिणायन में वृद्धि करना, इस तरह वृद्धि करत चार पांव तक बहाना ॥६॥ उतरायन में चार पांव से दो पांच नक प्रत्येक निाथ को एकतापीए चार भाग को हानि करना. इस विधि स पारपी की हानि वृद्धि जानना ॥ ७॥ इस तरह पौरपो की हानि बद्ध कही. अब अयन में शेप गये पीछे अर्थात् जा लव्यांक आवे बह युग में अयन गय हर जानना ॥ ८ ॥ एक अयन में चंद्र तिथि ८६ हावे और १८६ तिथि में हानि वृद्धि ३४ अंगल की हो. इस तरह होने स एनिधि कि हानि वृद्धि हव? इम में राशि की स्थापना करना.५८६.२४.१. इम में अंश राशिका मर सशिम गणाकार करके
प्रथम राशि में भाग देना. अर्थात् २४४:२४१८६ इन का भाग नहीं चले. इस से छद भेद 12करना. अर्थात् २४को छ से भाम दना तो ४ घाव और १८६ को इा भाग देने मे ३१ आये. इससे एक
११ अनुवादक-बालबाह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदरमहायजी ज्वालाप्रमाद जी
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