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________________ म अनुवादक-बालब्रह्मचारी मानि श्री अमोलक ऋषिजी भरणि, कत्तियाय ॥ जेट्ठामूलं दोणि णक्खत्ता तंजहा- रोहिणी, मिगसि।।ता असाढीणं अमावासं कति एणक्खत्ता जोयेति, ता तिणि णक्लत्ता जोतेति तंजहा-अद्दा, पुण्णवसु, पुसा ॥ ४ ॥ ता सावट्ठीणं अमात्रामं किं कुलं जातेति उवकुलं जोतेति, कुलाबकुलं जोतेति? ता कुलं वा जोताते उबकुलं वा जातीत ना लमति कुला व कुलं,कुलं व जाएमाणे महाणकवत्तजतिति उबकुलंजोएमाणे असेसा नक्खत्ते जोतेति ॥ ता सावट्ठीणं अमावासं कुल वा जोतेति उवकुलं वा जोतेति कुले वा जुत्ता उरकुलणवाजुत्ता सावट्ठी अमावामा जुत्ताति यतवं लिया एवं पेयव्यं गवरं मगसिरिए महाए फग्गुणीए भद्रपद व उत्तराभादपद.१ चैत्र में दो नक्षत्र रेवति व अश्विनी. १० वैशाखी अमावास्या के दो नक्षत्र-भरणी । कृत्तिका. ११. जोष्टमार की अमावास्या दो नक्षत्र रादिगा व मगश और १२ पाहमास की अमावास्या को तीन नक्षत्र अ.,' पास पर पप्प. ॥४॥ अहः भगत! श्रावण माप की अमावास्या का क्या कुल नक्षत्र का योग होने अथ: उपकल नात्र कामोरे. अथवा कलोपाल नक्षत्र का योग हार.. अहो शिष्य ! कुठनात्र का योग हाय, असा उपकलनक्षत्रकायेगहो पातु कुलो पकुल नक्षत्र का योग हाव नही. कला यागदावनक्षत्र, और उप में बननक्षम का योग हाव. इस से कुल का योग होवे अथवा उपल का योग . भइनी से कल यूक्त व उपकुल युक्त कहलाती ह यह श्ररण माम की अमावस्या की वक्ताता रही. एनहीशेष माग की अमावास्या का जानना. परंतु मृगशर, माघ फालान अं.र आपादमाम इनचारमाप्त की अमावास्था में कुलोपकुल कहना. और शप आठपास • पकाशक राजाबहादुर लाला मुखदव पहायजी ज्वाअपसादजी. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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