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________________ अर्थ 4 सप्तदशचंद्रज्ञाम सूत्र पष्ठ उपाङ्ग की तिथि १७ मुहूर्त और २६ भाग ६२ येतक पूर्ण होने और पूर्णिमा की तिथि२९ मुहूर्त ३२ भाग ६२ ये {है. इस मे इस में से १७ मुहूर्त - ६ भाग ६२ पे बाद करना, शेष १२ मुहूर्त ६ भाग ३२ ये रहे. और १४८ के दिन में से एक दिन के ३० मुहूर्त करना. उस में से १२ ब करना शेष १७ इस से १४७ के दिन १७ मुहूर्त संपूर्ण हुए पीछे २७ मे साग के प्रथम रहे में मृगशर शु १५ का पारंभ होते. अथ मृगरी १५ को कौनसा नक्षत्र क्षेत्र इस की रीति मृतशर शु पूर्णिव १४८ दिन में संपूर्ण होती है, इस में से एक बाद करने से १४७ रहे. क्योंकि १४७ वे दिन से पूनम का (मारंभ होता है. इस को एक दिन के मुहूर्त की राशि से गुबार करने से १४७ दिन के २९९४७० की राशि होने. इस राशि को ५४२०० मास राशि से भाग देने से पांच पूरी नक्षत्र मास हुए शेष २०१७० की राशि रही. इस के मुहूर्त करने के लिये ३७ का भाग देना जिस से ११२ खुहूर्त और शेष ६३ रहे. नक्षत्र के छठे पास के मुहूर्त जानने के लिये अभिनित नक्षत्र के विना श्रमिति के अत्रण के ३०, धनिष्ठा के ३०, शतभिषा के१५, पूर्वा भाद्रपद ३० उत्तम ४२०, अश्विन ३०, भरणी १५३ कुचिका ३० और रोहिणी ४५ मुहूर्त यो सब मिलाकर. २+३०+३०+१५+३०+४५+३०+ मुहूर्त रोहिणी नक्षत्र पर्यंत होते. इतना मागे ३१२. मुहूर्त में से १५+३०+४५=३०९ Jain Education International For Personal & Private Use Only - दसवा पाहुडे का छठा अंतर पाहुडा 4 १८५ www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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