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. चरयंति, कहते उदय संठिति ॥ ६ ॥ कइकठा पोरसी छाया, जोएत्ति किंते आहिए, 41
सूर्यका प्रकाश किस तरह रहता है उस का कथन है,इम में अन्य तीयों की प्राणा रूप पच्चीस परिवृत्ति कही है.
मातो पाहु मे फितने दूर के पुद्गल चंद्र सूर्य के तेज को स्पर्श कर रहे हैं. सो कहा है, इस में अन्य * तीथिको प्ररूणा रूप बीस पडिवृत्ति कही है. आठो पाहुड में जा सूर्य का उदय अस्त होवे, जहां दिन व रात्रि होवे, उस का कथन है, और उत्तर दक्षिण में प्रथम समय होचे उम के दूसरे समय में
पूर्वपश्चिम में प्रथम समय होवे उस काजम्बूद्वीप अर्थ पुष्कर द्वीप तक का वर्णन हैं.इस में अन्यतीर्थी की प्ररूपणा E-रूप तीन पडिवृत्तियों हैं. ॥६॥ नवत्र पहुडे में ताप क्षेत्र का कथन है इस में अन्यतीर्थिकी
प्ररूपणा रूप तीन पडिवृत्ति हैं. इनमें सूर्य के तेज का सारूप बतलाया है. जिस समय सूर्य तेज से पुरुष की छ या बनाव उस वर्णन में अन्यनीकी प्ररूपगा रूप पच्चीम पडिबृति हैं. और पुरुष छ.ग का वर्ण हैं उस में अन्य तीथि की प्ररूरणा रूप दो पडिवृत्ति अथवा छन्नु पडिवृत्ति भी है. और पौरसी, अर्थ, पैरसी व दद औरसी में कितना दिन व्यतीत होता है और शेष कितना दिन रहता है, और पुरुष छ या मे कितना दिन जाता है और कितना दिन शेष रहना पचम प्रकार की छाया का वर्ण: या सत्र कथन इस. मे कीया है. दशवे पाहुडे में चंद्र की साथ कितने नक्षत्र का योग होता है. उस का कथन है. उस में अन्यतथि की प्ररूपणा रूप पर परिपुत्त हैं. अग्यारहवे. पाहुडे में कितने संबलर कहे हैं. और उन की आदि ५ अंत कहां
प्रथम पाहुडा. 42
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