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________________ सूत्र अर्थ 4 अनुादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी शाम ३५३, गायमा बंदिऊण सिविणं ॥ पुच्छइ जिनवर वसई, जोइस गणरायणसिं ॥ ४ ॥ कइ मंडलाई वचेति ॥ तिरिच्छा किंवा एच्छति ॥ आभासीत, केवइयं माए, किंति संदिति ॥ ५ ॥ कहिं घडिया ऐसा कहिं तेउय संठिति ॥ किरिया ज्योतिषी के अधिकार की प्रथम पृच्छा गौतम स्वामीने की थी इस से उन का कथन कहते हैं. जिनेश्वर (श्री महावीर स्वामी को मन वचन बकाया से नमस्कार करके गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति नाम के अनगार चंद्रपति की पृच्छा करते हैं. ॥ ४ ॥ इस तरह मंगलाचरण करके चंद्रमसि सूत्र का संक्षिप्न में सम्बन्ध कहते हैं इस चंद्र के बीस बाहुडे कहे हैं. प्रथम पाहुडे में सूर्य के जो १८४ मांडले कहे हैं उन में { से एक वक्त में किनने मंडल स्पर्शता है और दो वक्त में कितने मंडल स्पर्शता है जिसका कथन है. इन के आठ अंतर पाहुडे हैं, दूसरे पाहुडे में से पूर्व प्रकार तीच्छ दिशा में सूर्य किस तरह चलता है यह कथन है, इस के तीन अंतर पाहुडे हैं. तीसरे पाहुडे में चंद्र सूर्य कितने क्षेत्र में रहे हुने प्रकाश करते हैं. इस में अन्य तीर्थी की प्ररूपना रूप बारह पडिवृति है. चौथे पाहुडे में चंद्रमा व सूर्य के संस्थान का वर्णन है. इस मे अन्य तीर्थ की प्ररूपणा रूप सोलह पडिवृति है. ताप क्षेत्र व अंधकार क्षेत्र की प्ररूपणा भी है. वैसे सूर्य ऊंचा नीचा व तीच्छ कितना सपना है उस का वर्णन है. ॥ ५ ॥ पांचत्रे ((नेज) का प्रतिघात कहां होगे तो कहा है. इसमें अन्यतीर्थिकी प्ररूपणा Jain Education International For Personal & Private Use Only पाहुडे में सूर्य की लेइया बीस परिवृति कही है छड्डे पाहुडे में प्रकाशक राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालापसादजी www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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