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________________ सत्र 48 अर्थ pet गयकिल से अरिहे सिद्वायरिए उवज्झाए सव्यसाहूअ ॥ २ ॥ फुडवियड पागइत्थं है वुत्थं पुव्वसुय सारणीसद, सुहुमगणिणावइट्ठ, जोइसगणराय पण्णत्ते ॥३॥ लीला लीन बना हुवा गजेन्द्र जैमे चलता है वैसे चलने वाले,और भी भगशब्द से ऐश्वर्यवाले,ठकुराइ बाले, अनुपम द ध रूप के धारक, तीन जगत में यशकीर्ति धारन करने वाले, उत्तम एक हजार आठ लक्षण धारण करनेवाले, धर्म के स्थापक, और सम्यक्ष प्रकार से यत्ता पूर्वक प्रवर्तक इत्यादि गुणों युक्त, चारों प्रकार के महा अतिशय के धारक श्री जिनेश्वर भगवान हैं... # इस तरह प्रथम गाथा में वर्तमान तीर्थाधिपति श्री महावीर स्वामी को नमस्कार करके दूमरी गाथा में समुच्चय पंच परमेष्टि को नमस्कार करते हैं. ॥ १ ॥असुर ( अमुरकुमार) मुर (वैमानिक देव) गुरुली सवर्णकमार ] भयंग ( नागकुमार अथवा व्यंतरादि देव के) वंदनिक, रागादि सब क्लेश से रहित ऐसे अरिहंत तीर्थंकर भगवान, सब कार्य की सिद्धि करने वाले सिद्ध भगवान, पंचाचार पालने वाले 4 आचार्य भगवान, मूत्र पठन पाठन के कर्ता उपाध्याय भगवान और मोक्ष के साधक साधु भगवान को नमस्कार होवे ॥२॥ इस प्रकार नमस्कार कर कहते हैं, किस को?-जिस का जैसा सरूप है वैस ही उस का जानपने का विषय है, वियड विस्तीर्ण सूक्ष्पबुद्धि गम्य प्रत्यक्ष साक्षात अक्षरों में जिस का अर्थ झलकता है, पूर्वश्रुत का सारभूत अर्थात् पूर्व में से उद्धार किया हुवा, सूक्ष्म बुद्धि वाले आचार्य ने कहा हुवा ऐसा ज्योतिषियों के गण के राजा जो चंद्र उस की प्ररूपणा सो. चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र कहा है. ॥३॥ प्रथम पाहुडा 4 सप्तदश चन्द्रप्राप्ति 4+BP 4 Jan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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