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अमोलक ऋषिजी
केते संवच्छराणाइ, कइ संवच्छरेईच ॥७॥ कह चंदमसोवुढी, कायात दाक्षिणा बहुं . है और चंद्र सूर्य की साथ कौन २ नक्षत्र योग में लाते हैं उस का कथन है. बारहवे पाहुदे में पांव संवत्सर, उन के माप, दिन व मुहूर्न का कथन है, और युग में चंद्र ऋतु, सूर्य ऋतु का कथन सूर्य नक्षत्र योग मालावे, दश प्रकार के योगका कथन, व कौन नक्षत्र में छत्रपर छत्र का योग होवे वह सब कथन है. ॥ ७ ॥ तेरवे पाहुडे में कृष्णपक्ष में चंद्र का विमान राहु के विमान की साथ रक्त होवे, सब उद्यात की हानि और शुक्लपक्ष में विरक्त होवे तत्र उद्योत की वृद्धि होवे, मुहूर्नादिक का मान, चंद्र युग की आदि में कहां से प्रवेश करे, अब नक्षत्र के अर्थ पास में चंद्रमाके अर्ध मंडल कितने चलते हैं और चंद्र के अर्थ मास में चंद्र के मंडल कितने चलते है.. नक्षत्र के अर्धमास से चंद्र के अर्ध मास तक में चंद्र के कितने अर्ध मंडल अधिक चलते हैं चंद्र के स्वतःके कैन से मंडल हैं और अन्य के कौन २ से मंडल हैं.. वगैरह कथन है. चउदहवे पाहुडे में चद्र का अंधकार व उद्यात का वर्णन कीया हैं. पनवे पाइडे में पांच ज्योतिषियों को पंदागति व शीघ्रगति चंद्र सूर्य व नक्षत्र एक मडल पर कितने भाग चलते है, पांचों युगके मास में चंद्र सूर्य नक्षत्र कितने २ मांडले चलते हैं, एक अहोरात्रि में चंद्र सूर्य नक्षत्र कितने मांडले चलो हैं मूर्य व नक्षत्र को एक २ मांडले में कितनी अहोरात्रि हो। एक युग में प्रत्येक के कितने मांडल है, वगैरह कथन हैं. सोलहवे पहडे में चंद्र सूर्य की छाया के लक्षण
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी
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