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________________ मुनि श्री अलक ऋषिराज + तत्थणं जेते णक्खत्ता णसंमागा, अबड्ड खेत्ता पण्णरस मुहुत्ता तेणं छ तंजहीसतभिसा भरणि, अद्दी, असलेला, साति, जेट्ठा, ॥ तत्थणं जेते णक्खत्ता, तेणं नक्खस्ता उभयभागा, विट्ठ खेत्ता, पणयालीसति मुहुत्ता. पण्णत्ता तेणं छ तंजहा-उत्तरभद्दवया, रोहिणि, पुणवतु, उत्तराफरणी, बिसाहा, उत्तरासाहा ॥ दसमस्स पाहुडस्स ततियं पाहुड ॥१०॥ ३ ॥ + ता कहते जुगस्स आदि आहितेति बदजा ? ता भिया, सवणा, खलु दुव्वे णक्ख इन दश नक्षत्र के नाम, १ अभिच २ अरे । ३ धनिष्ठा ४ रेवति ५ अश्विनी । भूगसर ७ पूष्य ८ हस्त ९१ चित्रा और १० अनुराधा. 'उक्तदश नक्षत्र पश्चिम तरफ अर्थात् दक्षिण से पश्चिा सरफ जाते योम करते हैं. वहां जो नक्षत्र पश्चिम के अंत जात रात्रि में अर्थ क्षेत्र पनाह माह में याग करे वे छ नक्षत्र है। जिन के नाम-१ शतभिषा २ भरणि ३ अद्रा ४ अश्लपा ५ मांति और ६ ज्यष्टा. और जो नक्षत्र पूर्वपश्चिप दोनों भाग में देह क्षेत्र के ४५ मुहूर्त योग करे वे नक्षत्रों छ हैं जिन के नाम, १ उत्तराभाद्रपद २ रोहिणी ३ पुनर्वसु ४ उत्तराफाल्गुनी ५ विशाखा और ६ उत्तराषाढा. उक्त छ नक्षत्रों पूर्वपश्चिम भाग में योग करते हैं. यह दशवा पाहुडा का तीसरा अंतर पाहडा संपूर्ण हवा ॥ १० ॥ ३ ॥ . ___ अब चौथा अंतर पाहुडा कहते हैं. अहो भगवन् : युग की आदि कैसे कही? अर्थात् बैठते युगमें चंद्रमा . प्रकाशक-राजाबहादरला मुखदेवसहस्यजी ज्वालाप्रसादजी. www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only Jain Education International
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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