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__ ता पच्छाभागा समक्खेत्ता सातिरेगा उणयालिमति मुहत्ता, तं पढमयाए सायं
चंदेण साई जोगं जोएति, ततोपच्छा अबरसातिरेगं दिवसं एवं खलु अभिते सवणे दुवे गक्खत्ता एगं रायं एगंचसातिरेगं दिवस चंदेणंसहि. जोगं जोएति जोग जोतित्ता जोगं अणुपरियटति, जोगं अणुपरियहित्ता सायं चंदे धणिट्ठाणं समाप्पिति ता धणिट्ठा खलु णक्वत्ते पच्छाभागे समक्खत्ते तिसति मुहुत्ते तं
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सप्तदश चंद्र प्रज्ञप्ती सूत्र षष्ठ-उपाङ्ग 4
साथ नक्षत्र का योग कैसे होवे सो कही ये ? अहो गौतम ! अभिजित व श्रवण ये दोनों नक्षत्र पश्चात् । भाग समक्षत्र साधिक ३९ मुहूर्त में पहिले दिन संध्या को चंद्रमा की साथ योग करे. अर्थात् युग की
आदि प्रभात से होती है, और वहां से प्रथम अभिजित नक्षत्र के योग का प्रारंभ होता है. अभिजित नक्षत्र का योग ९ मुहूर्त २४ भाग ६१ ये और ३९ भाग ६७ ये चंद्र की साथ होता है. यह नक्षत्र सडमठीये २१ भाग श्रवण नक्षत्र की साथ समक्षेत्री है. अभिजित नक्षत्र पीछे श्रवण नक्षत्र का योग होता है वह तीस मुहूर्त पर्यत रहता हैं. उक्त दोनों नक्षत्रों का योग दक्षिण से पश्चिम तक के क्षेत्र में 4 चंद्र साथ हावे. यद्यपि अभिजित् नक्षत्र प्रातःकाल से ही लगता है परंतु ६७ ये २१ भाग का श्रवण नक्षत्र की साथ पमक्षेत्री होने से पश्चात भाग क्षेत्री में लिया है. उक्त दोनों नक्षत्र एक रात्रि
दशवा पाहुड का चौथा अंतर पाहुडा 48
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