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________________ 488+ सप्तदश-चंद्रप्रज्ञप्ति मूत्र पष्ठ-उपाङ्ग 43 कयर णक्खत्ते जेणं पक्खत्ते गंत्तं भागा अबक्खेत्ता पण्णरसमहत्ता पण्णत्ता कयरे णक्खत्ते जेणं णखत्ता उभयंभागा दिवद्रक्खेत्ते पणयालिप मुहत्ता पण्णत्ता, ता एपसिणं अट्ठावीसाए णखत्ताणं, तत्थणं जेते णक्खत्तेणं क्खत्ता पुश्वभागा समक्ख ते तिसति महत्ता पण्णत्ता तेणं छ तंजहा-पव्यभवया कत्तिया महा, पव्वाफग्गणि, मलो, पव्यासाढा ॥ तत्थणं जते नक्खत्त पच्छा भाग समखेत्ते तिसइ मुहता पण्णत्ता, तेणं दस तंजहा अभिते, सवणे, घणिट्ठा, रेवति, अस्सिाण. मगसिर, पुस्सो, हत्था, चित्ता, अणुराहा पच्छा भाग दस हवति ॥ तीस मुहूर्त के है, कोनसे नक्षत्रो अर्धक्षेत्र पनाह मुहूर्त के हैं और कौन से नक्षत्र दोनों विभाग देढ क्षेत्र पंतालीस मुहूर्न वाले हैं? उत्तर-अहा शिष्य ! इन अठावीस नक्षत्रों में से जो नक्षत्र पूर्वभाग पमक्षेत्र में तीस मुहूर्त पर्यंत चंद्रमा साथ योग करे ( अर्थात् क्षेत्र मंडल के चार विभाग करना. पूर्व म पश्चिम तक में और उत्तर से दक्षिण उद इस में जो पूर्य दक्षिण की मध्य में योग करे वह पूर्व भाग योग जानना, एसे छ नक्षत्र कहे हैं जिन के नाम १ पूर्वाभाद्र पद, २ कृत्तिका, ३ मघा, ४ पूर्व फलानी, ५ मूल और ६ पूर्वाषाढा. यह छ नक्षत्र पूर्व भागमें चंद्र साथ योग करते हैं. जो नक्षत्र पश्चिम तरफ समक्षेत्र तास मुहूर्त कहैं वे दश नक्षत्र हैं ( नब नक्षत्र समक्षत्रीय है और एक अभिच नक्षत्र समक्षेत्र के । ६७० 'भाग वरे वैसे २..भाग क्षेत्रवाला हैं तथापि समक्षेत्र में ही इस की गिणना की है । दशा पाडे का तीसरा अंतर पाहुडा 4g www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only Jain Education International
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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