________________
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
ता कहतं एवंभागा आहितेति वदेजा, ? ता एतासिणं अट्ठावीसाए गक्खत्ताण अस्थि णक्खत्ता, पुवंभागा समक्खेत्ता तिसंतिमुहु ता पण्णता, अत्थिणं नक्खत्ता जेणं नक्खत्ते पच्छाभागा समाक्खेत्ता तीसई महत्ता पणत्ता अत्थिणक्खत्ता जगं नक्खत्ते णत्तं भागा अवड्रक्वेत्ता पण्णरस महत्ता पण्णत्ता, अत्थिण क्खत्ता उभयभागा दिवडक्खेत्ता पणयालसिं महत्ता पण्णत्ता ॥१॥ ता एएसिणं अट्ठावीसाए णखत्ताणं कयरे णक्खत्ता जेणं णवत्ता पुवभागा समक्खत्ता तिसति मुहुत्ता पण्णत्ता, कयरे पक्खत्ता जेणं णक्खत्ता पच्छाभागा समक्खेत्ते तिसति महत्ता पण्णत्ता ॥
अव दशवेका तीसरा अंतर पाहुडा कहते हैं. अहो भगवन् ! किस तरह इन नक्षत्रों के भाग कहे हैं. अहो. शिष्यः इन अठावीस नक्षत्रों में से एमे भी नक्षत्रों हैं कि जो नक्षत्र पूर्वभाग समक्षेत्र पाले तीस मुहूर्त कहे हैं. कितनेक ऐसे नक्षत्र हैं कि जो पश्चातभाग ममक्षेत्र वाले तीस मुहूर्त के कहे हैं, कितनेक नक्षत्र ऐसे है कि अर्धभाग चाले पन्नरह मुहूर्त के कहे हैं, और कितनेक नक्षत्र ऐसे है कि जो उभय भाग के देढ दिन के क्षेत्रगले ४५ मुहूर्न के कहे हैं ॥१॥ अहो भगान् ? इन अठावीस नक्षत्रों में से कौन नक्षत्रों ऐसे हैं कि जो पूर्व भाग सम क्षेत्र तीस मुहूर्न का कहा है, कोनसे नक्षत्रों पश्चात भाग समक्षेत्र
.प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायती ज्वालाप्रसादजी.
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International