________________
सूत्र
अर्थ
कभी अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषि
भरणिदिया असिणिपज्जवसिया आहितेति वदेखा, एगे एवमाहं ॥ ५ ॥ श्रयं पुण एवं वयामोता मनेविणं णक्वत्ता अभियादिया उत्तरामाढापज्जबसिया आहितति वदेजा, तजहा अभिच, सवणं, धणिट्ठा, समसया, पुव्यनद्दत्रया, उत्तरभद्दत्रया, रेवति, अमणि, भरगि कतिया राहिणी, मिगसिर, अंदा, पुनवसु, पुरुसो, असलस्मा, महा, पुत्राफगुणी, उत्तराफगुणी, हत्था, चित्ता, सात, विस हा, अणुराहा, अट्ठा, मुलो, पुण्यासाठा उत्तरासाढा || दसमस्त पढमं पाहुडं सम्मत् ॥ १० || 9 ||
चंद्रमा सूर्य के साथ जांग करते है ५ किसने ऐसा करते है भरणि आदि से बनी पर्यंत मत्र नक्षत्र चंद्रमा सूर्य की साथ योग करते हैं, और में इस कथनको ऐसे कहता हूं कि अभिनादि से उत्तरपदापर्यंत सब नक्षत्र चंद्रमा सूर्य की साथ भोग करते हैं. जिन के नाम-१ अभिच २ श्राण ३ ष्टशतभिषा पूर्वाभाद्रपद उत्तरा भाद्रपद ७ रेवती ८ अश्वनी ९ भरणी १० कृतिका ११ रोहिणी १२ मृगनर १३ आर्द्रा १४. १५ पुष्य १६ अश्ला १७ मधा १८ पूर्व लगुन १९ उत्तरा फाल्गुन २० । २१ चित्र २२ स्वाति २३ विशाखः २४ २६ मूत्र २७ पूपदा और २८ उत्तगदा. उक्त अठावीस नक्षत्र बैस ही युग को आदि से पुष्य नक्षत्र से पुष्यत्र पर्यंत योग करे.
२५ चंद्र सूर्य की माथ याग करत हैं.
यह दशमा पाहुडा का प्रथम अंतर पाहुडा संपूर्ण हुवा ॥ १० ॥ १ ॥ ..
•
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
● प्रकाशक- राजाबहादूर लाला सुखद सहायजी ज्वालाप्रसादजी
www.jainelibrary.org