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+ मसदश चंद्र प्रतिसूक-पट उपस 421
॥ दशम प्राभृतम् ॥ ता जोगेति वत्थस्म आवलिय निवाए आहितति वदंबा ? ता कहते जोगवत्युस्स मावलियानिए हितति यदेजा ? तत्य खल इमातो पंच पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, तत्य एग एमाहस जोगं जोततिता मन्त्रविणं नवखत्ता कतियादिया भरणिपजवसिया अहितति वेदजा, एग एवमासु ॥॥ एग पुण एवमाहमु-ता सम्बविण णवत्ता महादिया आसलंस पजवसिया आहितति वदेजा, एग एवमाहसु ॥ २ ॥ एगेषण एवमाइंसु ता सम्वविणं नक्खता पणिट्ठा दिया सवण पजयसिया आहितति वदेजा, एगे एवमा. इंसु ॥ ३ ॥ एगेपुण एवं माहंसु-ता सम्वेविणं णवत्ता असिणिआदिसा रेवति पज्जवसिया आहितेति वदेजा एगे एवमाहंमु ॥ ॥ एगपुण-ता सम्बविणं जासत्ता बादशवा पाइरा करते हैं. अहो भगवन् ! आपकमत में चंद्रपा मूर्य की माथ मसानों मनुक्रम से कैम जग जोडते! अहो भगवन्! नक्षत्र चंद्रपा व सूर्य की साथ कैपे चलन हैं अहाशिय!इस में अन्यनीयाकी प्ररूपणा रूप पांच परिवृत्तियों कही है. जिन में से एक ऐमा कहते कि क का में भरणी पर सब नक्ष चंद्रपा सूर्य की माय जाग करते हैं, २ दूसरे किनोक एग करत. क मादि सपश्लवा पर्यंत सबमात्र चंद्रमा सूर्य की साथ योग करते हैं, कितनक ऐसा कहत हैं कि धनिशदि श्रवण पता चनमचंद्रमा पूर्व की साचोब करते हैं, किसनेक ऐसा कहते कि परिधनी रेती व सत्र न
+या पादुका पहिला र
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