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________________ F अर्थ २०३ अनुवादक - बालव्रह्मचारी मुनि श्री ओमालक ऋषिजी ॥ अष्टम प्रामृतम् ॥ ता कहते उदयसंठित आहितेति वदेजा ? तत्थ खल इमातो तिष्णि पडिवताओ पण्णत्ताओ तंजहा तस्थ एंगे एवं माह ता जया जबूद्दीवेदावे दाहिण अट्टारस मुहुते दिवसे भवति, तयाणं उत्तरड्डूवि अट्ठारम मुहुत्ते दिवसे भवति, ता जयाणं उत्तरढे अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति तयाण दाहिणड्डू अट्ठारस मुहुत्तं दिवसे भवति ता जया दाहिण सत्तरस मुहुत्ते दिवसे भवति तयाण उत्तरत्रि सप्तरस मुहुत्ते दिवसे भवति. जाणं दाहिणड्डू सत्तरसमुहुत्त दिवसे भवति तयाणं उत्तरवि सत्तरस मुहुते अब आतंत्र पाहुडे में सूर्य के उदय की मर्यादा का कथन करते है. अहो भगवन् ! आप के पस से सूर्योदय की संस्थिति कैसे कही है ? उत्तर - अहो गौतमः इसमें अन्यतीर्थ की प्ररूपणा रूप तीन पडिवृ { कही है ? किसने ऐसा कहते हैं कि जब जम्बूद्रीप नामक द्वीप के दक्षिण में अठारह मुहूर्त का दिन हो तब उत्तरार्ध में भी अठारह मुहूर्त का दिन होता है और जब उत्तरार्ध में अठारह मुहूर्त का दिन होता है तब दक्षिणार्ध में भी अठारह मुहूर्त का दिन होता है. ऐसे ही दक्षिणार्ध में जब सतरह { मुहूर्त का दिन होता है तब उत्तरार्ध में भी सतरह मुहूर्त का दिन होता है और जब उत्तरार्ध में सत्तरह मुहूर्त का दिन होता है तब दक्षिणार्ध में भी सतरह मुहूर्त का दिन होता है, यो इस अभिलाप से जब Jain Education International For Personal & Private Use Only * प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रमा १२४ www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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