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448 चंद्रमा ३
वदेजा ? ता अयं जंबुद्दीवेदीये जात्र परिक्खेवेणं ता जयाणं सुरिए सव्वन्तरं मंडलं उत्रसंकमिचा चारं चति तयाणं उत्तम कट्टुपत्ता अट्ठारस मुहुते दिवसे भवति जहणिया दुवालस मुहुत्ता राई भवति ॥ से निक्खममाणे रिए णवं संवच्छ रं अयमाणे पढनंसि अहोरत्तंसि अन्यंतरानंतरं मंडलं जात्र चारं चरन तयाणं एगं भागं उपाए, एगेणं रातिदिएणं दिवस खंत्तरस निव्विहित्ता रातिखेत्तर अभिवट्टित्ता चारं चरति अट्ठारस तीसेहिं सतेहिं मंडलच्छेया, तयाणं अारस मुहुत्ते दिवसे
क्या हेतु है ? अहो गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक यावत् परिधिवाला है. इस में जब सूर्य सब से आभ्यंतर { पहिले मंडलपर रहकर चाल चलता है तब उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन व जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है. वहां से नीकलता हुआ सूर्यवतार में आया पहिली अहोरात्र में आभ्यंतर के अनंतर दूसरे मंडलपर जब चाल चलता है दिन में एक भाग प्रकाश का दिन के क्षेत्र यहाँ मंडल के १८३० भाग करना ऐसा एक : भाग एक मंडल को दो सूर्य एक अरात्रि में पूर्ण करते हैं.
में हीन कर रात्रि क्षेत्र में बढाकर चाल चलता है. जानना.. (१८३० भाग करने का कारन कहते हैं.
एक अहोरात्र में एक सूर्य के तीस मुर्ख होते हैं कैसे ही दूसरे मर्ग के तीस मुहूर्त मीठाने स ६० मुहूर्त
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छठा पाहुडा
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