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सूत्र
अर्थ
२४ अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अलक
॥ २२ ॥ अणुसागर सहस्तमेव सूरिया ॥ २३ ॥ ता अणुसागरोत्रम सतसहरसमेत्र सूरिया || २४ ॥ गेपुण एवमाहंस ता अणुउसप्पिणी ओसप्पिणिमेत्र रियरस अण्णाउपाइ अण्णावेति आहितेति वदेजा ॥ २५ ॥१ ॥ वयं पुण एवं व्यामो ता तीस मुहुत्त सूरियस ओयाओं अवडीयाओ भवंति तेनंपरं सूरियस्त उया अणवट्टिताओ भवति ॥ छम्मास सूरिया आयं पिबुद्धेति, छम्मासं सूरिया उयं अभित निक्खममाणा मूरिए णिवुट्टेति पविसमाणे सूरिए उयं अति ॥ २ ॥ तत्थणं को हेतुति में २४ प्रत्येक लाख मागम में और २० कितनेक ऐसा कहते हैं कि प्रत्येक अवसर्पिणी काल में सूर्य का प्रकाश अन्य उन दोना है और अन्य प्रकाशता है, इस कथन को मैं प्रकाश कहता हूँ कि तीस मुहूर्त पर्यंत सूर्य का प्रकाश अपस्थित रहता है क्यों की प्रत्येक मंडलपर एक सूर्य तीस मुहूर्त तक रहता है. इस से जोर मंडळपर होने उस आश्री अवस्थित और दूसरे मंडल आश्री अनवस्थित है उस में कितनेक मेटलर प्रकाश होवे और कितनेक मंडलपर अंधकार होवे. प्रथम छमास में सूर्य का प्रकाश कमी होता है, और दूसरे छनास वें सूर्यका प्रकाश वृद्धि पाता है. अर्थात् नीकलता हुआ सूर्य { प्रकाश की हानि करता है, प्रवेश करता हुवा सूर्य प्रकाश की वृद्धि करता है. ॥ २ ॥ अहो भगवन् इस
उत्सर्पिणी
इस
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• प्रकाशक राजा बहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी •
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