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________________ सूत्र अनुमदक कालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + तेत्तिय जोयणसते एगति भागे जोयणस्त आयामेणं आहितेति वदेजा ॥३॥तयाणं किं अंधकार संठिया आहितेति वदेजा ? ता उद्दमुहं कलबया पुप्फसंठीया आहितति वदेजा, अतो संकुडा बाहिं। वीच्छणा,तंचर जाव तीसेगंदु बाहाआ अगुवद्विताआ भवंति, ता सव्वभंतरिया चेव वाहा,सव्वबाहिरिया चेव बाहातीसेणं सबभतरिया सहा मंदर पवातणं छ जोयणसहस्साति तिणिय चउबीसे जोयणसते, छच्चदस भागे जोयणरस परिक्खातिसेणं परिक्खवणं विससेकतो आहिया?ता जणं मदरस्स पव्वयस्स परिक्खेत्र अर्थ उपयुक्त भाग में पीलाने से ४८३३३ योजन होवे ॥३॥ अथ संस्थान कहते हैं. प्रश्न-उस समय Bअंधकार का क्या संस्थान है ? उत्तर-ऊर्थ मुख कलंबु का संस्थान कहा है, वह अंदर से सकडा बाहिर से चौडा यावत् पूर्वोक्त प्रकार उस को दोनों वांहा अनवस्थित होती है. सब से आभ्यन्तर की वांहा व सब से बाहिर की बांहा. उम में सब से आभ्यन्तर की बांडा मेरु पर्वत की पास छ हजार तीन सो चौवीस योजन और एक योजन के दश भाग में से छ भाग ६३२४६. योजन की परिधिवाली है. किम तरह आभ्यन्तर बांहा की परिधि कही ? जो मेरु पर्वत की परिधि है उस से दुगुनी परिधि करना क्यों कि सर्व आभ्यन्तर मंडल में चार काल में एक मूर्य जम्बूद्वीप के चक्रवाल में प्रवेश करते हुवे पोशाक प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवस हायजी ज्वालाप्रसादमी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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