________________
।
जी
- अह. पडिवत्तीओणेयव्यातो जाव ता वाला णेतिय मांठगाणं तारखेत्तं संठिनी आहितात
वदेजा, एगे एव माहनु ॥८॥ एग तु ताज संठिर जपूर्दय दाव ता सीठयाणं ताव खत्ते साडेइ आहितात वदेजा एो एवं माहंतु ॥५॥ एगेपुण एव माहंसु ता भरहे वासे संठिएणं ता वखते एगम ठपणं आहितेति बदजाएगेएव माहं ॥३०॥१उजाणं संठियाण तात्र खत्ते॥११॥ नित्राण संठियाणं ताव खेत्ते ॥१२॥ ता एगनिमह ताव
साठयाणं ताव खेत्ते ॥ १३ ॥ दुहतो निसह सठियाणं ताव खेत्ते संठिति, एगं त्तियों कही. १ कितने ऐसा कहते हैं गृह के आकारयाला चंद्र मूर्य का ताप क्षेत्र है इस ही प्रकार ऊपर कहे अनुसार नवमी भे मोलबी तक आठ पडिवृत्तियों कहना यायत बालगपात वालकों को क्रीडा की नावा के आकार वाला चंद्र मूर्यका प्रकाश है, ९ कितः एता कहते हैं जम्बूद्रीय संस्थानवाला तापक्षेत्र है१० १०कितनेक एसा कहते हैं, कि भरनक्षेत्र संस्थानाला है,११ कितनेक एमा कहते हैं उद्यानके संस्थानवाला तापक्षत्र है, १२ कितनेक ऐसा कहते हैं कि नगर के निकलने के संगन वाला ताप क्षेत्र है, १३ कितनेक, ऐसा कहते हैं कि रथ को एक तरफ एक बैल जोता हुवा होवे वैसा संस्थान वाला ताप क्षेत्र है, कितनेक ऐसा कहते हैं कि रथ को दोनों तरफ बैल जोते हुये होवे पैसा संस्थान वाला ताप क्षेष
+9 अनावदक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
. प्रकाशक-राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
ब
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org