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पाङ्ग
साठयाणं चंदिया ॥ १४ ॥ ताहमिहतल संठियाणं चंदिमा ॥ १५ ॥ एगे पुण एवं मासु बालगणेतिया संठियाणं चंदिम सरिए संठिति आहिया ॥ १६ ॥ ain ज एव माहंसु तासमचउरंस संठाणं चदिम सरियं संठिति आहितति वर्दजा, एवं एएणं गएण यन्त्र,जो चंबणं इतरहि,॥३॥ता कहते ताव खेत्ते संठिइ आहितेति वदेजा ? तत्थ खलु इमातो सोलम पडिवठिो पण्णत्ताओ, तंजहा-तत्य एगे एव माहमु तागेहागार संठियाण ताव खेनं संठिति, आहितेति वदेवा, एवताओ चत्र,
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मदशद्र प्रताप्ति सूत्र
48 चौथा पाहुड!
अर्थ
गोला के संस्थान वाले हैं. यहां इस का विवरण करते हैं. सब काल में सुबमासुखम काल युग की अदि है. उस दिन धारण की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा आती है. उसदिन उदय हाता हुया एक पूदिक्षिण अंजा में चले और दूसरा सूर्य पश्चिमत्ता यायव्यकून में चले. एक रंद्र पूलित्त -ईशा। कू में बंद, अरमरा चंद्र पश्चिम क्षम-कर में चले. इलिये युग की आदिमें सूर्य का समतुन
है. और यहां से नकलते हैं। वर्तकार सनी इन चंद्र सूर्य के स्थान अर्ध कविठ के 1-1. कारवाले हैं क्या चन्द्र सूर्य के विमान अर्ध आकर कालच तापक्षत्र का संस्थान कहते हैं. अहो भगवद! ताप क्षेत्र का संस्थान किस प्रकार कहा? उत्तर-३समें अन्य तीथिकी मरूाणा मसोलह पारेव
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