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________________ . + सप्तदन-चंद्र प्राप्त सूत्र पष्ठ-उपा ॥ चतुर्थ प्रामृतम् ॥ ता कहते सेय आतितंट्रिए आहिएति वदेजा?तत्थ खल इमातो दुविहा संठाण संठिइ पण्णत्ता तंजहा-चंदय सरिया संठिती. ताव खत्तं संट्रियं ॥ता कहते चंदिय सरिय संठिइ आहितति वदेजा ? तत्थ खल इमाओ मोलस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ संजहा-तत्थ एगे एक माहेस ता समचउरस संठियाण च दम सूरिया सठिती आहितेति वदेजा एगे एवं माहंस॥ १॥ एगे पुण त विसमचउरसं संठियाणं चंदिम :रियं संविति आहितति वदज्जा, एग एव माहसु ॥ २ ॥ एवं एतेणं अभिलावणं समचउक्कोण है अब चौथा पाहुडा कहते हैं.-अहो भगरन् ! श्वेत वर्णवाला नाप क्षेत्र का कौनमा संस्थान कहा है ? उत्तर-इस के दो प्रकार से मंथन क र वानगी दर क्षत्र का संस्थान है इस में चंद्रमा सूर्य का मस्थान किस प्रकार कहा है ! उत्तर-इस की संयर पडिसियों कही है. . में कितनेक ऐसा कहते हैं कि चंद्र सूर्य के विकार सपन सम्मान काल,किनक ऐना कहते हैं। कि विषम चतुर संस्थान वाले विशन, ३ एना की है कि समचतुष्कोन के संस्थान वाले हैं, ४ कितनेक एका करत हैं कि विषम चतुष्कोन संस्थान वाले हैं, ५ कितनक ऐमा कहते हैं कि समचक्र बाल संस्थान वाले हैं, ६ कितनेक ऐंमा कहत है. की विषम चक्रवाल संस्थान वाले ७१ कितनेक ऐमा कहते हैं कि अर्धचक्रवाल के संस्थान वाले हैं ८ कितनेक ऐसा कहते हैं कि उनके आकार . चौथा पाहुडा wimmammmmmmmmmmmmmmmmm 48 : 4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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