________________
samanamannaamnnamannaameer
42 अनुवादक-कालग्राचार्गमान श्री अयोलक ऋषिजी :
उत्तम कट्ठपत्ते उक्कोसा अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति जहणया दुवालस मुहुचा राई भवति ॥ ता जयाणं एते दुवे सूरिया सच वाहिरं जाव चरति, तयाणं जंबृद्दीव हीवस्स दुन्नि पंच चक्कवाल भागे जाव पभासंति तंजहा एगेबि सरिए एगं पंचवक भागे जाव भासंति जाव पभसंति, एगवि एग पंचचक्कभागाओ भासंति जाव पभासंति ॥तयाणं उत्तम कट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारस मुहत्ता राई भवति, जहाणियाँ दुवालस मुहुने दिवसे भरति ॥ २ ॥ इति ततियं पाहुडं सम्मत्तं ॥ ३ ॥ *
की एक ज पर ७४२ भाग होवे. दोनों सूर्य मीलकर १४६४ भाग उद्योत करे २१०९८ भाग में अंधकार रहे. पहिले तर पंटल पर एक सूर्य का १००८ भाग का उद्योत और ७३२ भाग का "धकार और माशांदर के मंडळ.पर ७३२ भागका उद्यान व १.१८ भाग का अंधकार. इस से १.१८७६२ लानाद करो. मग उद्यान के कमी से. इतना फरक १८३ मंडल में होता है। इस से इस ८ का भाग दो भागयोत की हानि प्रत्येक मंडल पर होव. जैसे एक. सूर्य का कहा मे ही दूमरा सूर्य का जानना. यह तीसरा पाहुडा संपूर्ण हुवा ॥ ३ ॥ *
.भकाशक-रामबहादुर लालामुखदेवसहायजी ज्याला प्रसादजी.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org