SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ whomemamannaamanawar 488 मरश बद्रं पानि व पात्र जाव परिक्खेवे सेणं एगाए जगतीए सवतो समंता संपरिक्खित्ते, साणं जगति अट्र जोयणायं उद्धं उपत्तेणं एवं जहा जंबद्दीव पण्णत्तीए, तहेव निरवसेस जाव चोहससालला सयसहस्सा उप्पणंच सलिला सहस्सा तवुति भवतित्ति मक्खाय। जंबुद्दीवे पंचकभागं ट्रिए आहिएति वदंजा ॥ ता जयाणं एते दुवे सरिया सन्दभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरति तयाणं जंबुद्दीवस्स दीवस्स तिण्णिए चकभागातो भासंति उजावंति पभासंति तंजहा एगेव सरिए एगदीवडयं पंच चक्कभागे जाव पभासंति ॥ एगवि सरिए एग दिवड्डय पंचचक भागे जाव भासंति ॥ तयाां एक भाग में प्रकाश करे. इस समय TERE SEART हून की रात्रि व जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होरे । ॥२॥ अब यहां पर प्रत्यक गंडस पर कितना प्रकाश करे मो नीकालने की विधि-जम्बूद्वीप के चक्राल के पांच भाग करे जि में एक भाग के ७३२ भाग ही कराना करे तो पांच भाग के १३६६२ भाग होवे इससे पहिले मंडल पर एकसूर्य दह भाग उद्यात कर इससे दढ भाग के १०९८ भाग दुखे हा दूसरे सूर्य का १०९८ भाग मीलान मे २१९६ भाग उद्यान करे. शेष १४६४ भाग अंधकार है. अर्थात् दोनों बाज दोनों सर्य के १२ भाग अंधकार हवे. अब सब के बाहिर के मंडलपर 'एकमाग उद्यात करे जिसके७२ भाग मेवे और देश मान रहार करे जिस के १.१८ भाग हो तीसरा पाहुडा 4848 wrommmmmmmmmmmm म । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy