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________________ - - • . मनुवादक-पालनमवारी मुनिश्री मोहनी ___ सय चंदिम पभासंति जाव पदेला एगे एवमाहंमु ॥ ९ ॥ एगेपुण वावरारि दीवसयं वावत्तरि समुह सयं जाव एवं वदेजा, एगे एवमाहंम् ॥१०॥ एगेपुण वपालीसं दीव सहस्सं वयालीसं समुद्द सहरसं चंदिमा पमासंति जाव वदेज्जा एगे एवं मासु।।१३॥एगेपुण वावत्तरि दीवसहस्सं वाबत्तांरि समुद्द सहस्सं चंदिमा भो भासंति जाव बदेजा गे एवजाहंस ॥ १२॥ १॥ वन एवं ष्यालो ता अयणं जंबहीवे दीवे या जगसी आठ योजन की ऊंची है यो जिस प्रकार जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति में जमती का कथन कीया यह सन्न मानना पावत् इस मन्यूद्वीप में चौदह लाख छप्पन हजार नदियों हैं. इस जम्बूद्वीप की परिधि के पांच माम करना. इस जम्बुद्वीप में जर दोनों सूर्य सब से आभ्यन्तर मंडल पर चलते हैं तब उस पांच माग में से तीन माग में उद्योत करते हैं, तपते हैं, यावत् प्रकाश करते हैं. एक मूर्य पांच भाग में से देव माग प्रकाश करता है, वैसे ही दूसरा सूर्य भी देद भाग प्रकाश करता है. दोनों मीलाकर तीन भाग प्रकाश करते हैं. और दो भाग में अंधेरा रहता है. इस समय उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन व जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है. जब दोनों मूर्ष सब से पाहिर के मंडल पर रहकर चाल चलते हैं तब नम्बूद्वीप की परिधि के पांच चक्र भाग करे उस में से दो भाग में उद्योत करे यावत् प्रकाश करे और तीन भाग में अंधकार करे. एक मूर्य पांच के एक भाग में महाश करे और दूसरा सूर्य भी पांच के .प्रकाशक-राजावादादुर लाल सुखवय सहायजी ज्याप्रसादजी ० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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