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________________ साहिए,रायसाहिए दाइयसाहिए मच्चुसाहिए अग्गिसमाण्णे जाव मच्चुमसाणे,सडणपडण विद्धंसण धम्मे,पच्छा पुरंचणं अवस्सविप्पजहणिजे,सेकेणं जाणइ अम्मयाओकेजाव गमणाए.तं इच्छामीणं जाव पव्वइत्तए॥१०३॥ तएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो जाहे णो संचाएति मेहकुमारं-बहहिं विसयाणुलोमाहिं, आघवणाहिय, पण्णवणाहिय, सण्णवणाहिय विण्णवणाहिय,आघवितएवा, पण्णवितएवा,सण्णवितएवा, विण्णवित्तएवा, ताहे विसयपडिकूलाहिं संजम भउव्वेग कारियाहिय पण्णवणाहिय पण्णवेमाणा एवं वयासी-एसणं जाया ! णिगंप्पेपावयणे सच्चे अणुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे याउए राज लूटे, भातृ भागले, व मृत्यु विनाशपावे ऐसा है अग्नि से जले यावत् विनाश को प्राप्त होवे, सडण पडण । E व विध्वंस स्वभाव वाला हैं इसे अवश्य छोडना तो पडेगा, और भी यह कौन जानता है कि पहिला कौन जावेगा व पाछ कौन जावेगा इसलिये में प्रत्रजित होने को चाहता हू ॥ १०३ ॥ जब मेघ कुमार के मात पिता उनको विषयानुकूल वचनों कह कर समझाने में समर्थ हुए नहीं, तब विषय प्रतिकूल, संजम में भय व उद्देग करने वाले शब्दों से समझाते हुए ऐसा कहने लगे-अहो पुत्र ! यद्यपि निर्ग्रन्थ के प्रवचन सत्य हैं। प्रधान हैं केवल संपूर्ण अखण्डित हैं मोक्ष प्राप्ति केलिये प्रतिपूर्ण हैं, प्रत्यक्षादि प्रमाण मे न्यायसिद्ध 19 हैं, शुद्ध निष्कलंक हैं, मायदि तीनों शल्य रहित हैं, सदगति में प्राप्त कराने वाले हैं, कर्म से मुक्त षष्टमांग-ज्ञाता धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 1880 4802 उत्क्षिप्त ( मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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