SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी . संसुद्धे सलगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमगे. निजाणमग्गे णिव्वाणमग्गे सन्वदुक्ख पहीणमग्गे, अहीवएगंतादिट्ठीए, खरोइवएंगंतधारार, लोहमयाइवजवाचावेयव्वा, घालुयाकवलोइवनिरस्साए, गंगाइवमहानईपडीसोधगमणायाए, महासमुहोइवभूयाहिं दुत्तरे, तिक्खकमियव्वं गरुयंलंबेयवं, अस्सिधारावसंचरियव्वं; जो खलु कप्पति जाया ! समणाणं णिग्गंथाणं आहाकम्मिएवा, उद्देसिएवा, कीयगडेवा, ट्ठविएवा, रइएवा, दुब्भिक्ख भत्तेवा, वदलियाभत्तबा कंतारभत्तेवा, गिलाणभत्तेवा, मूल.. भोयणेवा, कंदभायणेवा, फल भोयणवा, वीयभाषणेवा, हरियभोयणेवा, भोतएवा, करने पाले है, निरुपम किसी प्रकार की. उपमा रहित निर्वाण लेगाने वाले हैं. जन्मजरा मृत्युरूप दुःख दूर करने वाले हैं; परंतु सर्प जैसे एकांत दृष्टिवाला है, शुकी एकधारा समान एकगमी हैं, लोहमय चने चावने जैसे कठीन हैं,बालु के कवल करने जैस निस्तार हैं,गंगा महानदी के प्रति श्रोतमें नाने जैस बिक्रट हैं, महासमुद्र भुजासे तीरने जैसे दुस्तर है, जैसे खङ्गभालादिक्रकी तीक्षणधार आक्रमण करना दुष्कर है वैसेही चारित्र पालना दुष्कर है, बडी शीला उठाना दुष्कर है वैसे ही चारित्र दुष्कर है, और असिधारा पर चलने दुष्कर है. और भी श्रमण निर्ग्रन्थों को आधा कमी, उद्देशिक, मोललीया हुवा, स्थापकर रखा हुवा रचा (जमाया) हुवा, दुर्मिक्षमें भिक्षुको देने केलिये बनाया हुग, वर्षा नहीं होने से देने को बनाया हुवा,ग्लनि । -- प्रकाशक-रानावहादुर लाला मुखदेवपहायनी ज्वालाप्रसादजी . 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy