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· कंचुइजपुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी-किं गं भो देवाणुप्पिया ! अज्ज रायगिहे . *।
णयरे इंदमहेइवा खंदमहेइवा एवं रूद-सिवे-धेसमण-णाग-जक्ख भूय-णई-तलाय रूक्ख-चेइय-पन्वय-उजाण-गिरिजत्ताइवा, जओणं उग्गंभोगा जाव एगदिमि एगाभिमुहा गच्छति ॥ ८७ ॥ तएणं से कंचुइज्जपुरि समणस्स भगवओ महावीरस्म गहियागमण पवित्तिए मेहकुमारं एवं वयासी-णो खलु देवाणुप्पिया ! अजरायगिहे णयरे इंदमहेइवा जाव गिरिजत्ताइवा जण्णं एए उग्गा जाव एगदिसि एगाभिमुहा णिगच्छंति, एवं खलु देवाणुप्पिया! समणेइ आइगरे तित्थयरे इह भागए इह संपत्ते इह मेघकुमारने कंचुकी पुरुषोंको बोलाया और कहाकि अहो देवानुप्रिय ! आज नगरमें क्या इन्द्रमहोत्सव, स्कंध महोत्तत, रुद्र, शिव, वैश्रमण, नाग, यक्ष, भूत, नदी, तलाव, बृक्ष, चैत्य, पर्वत, उद्यान व गिरियात्रा है। कि जिस से ये उग्र भोग यावत् सब एक दिशि में जाते हैं ॥ ८७ ॥ अब कंचुकी पुरुषको श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे हैं ऐसी बात की खबर मीलने से ऐसा मोला-अहो देवानुप्रिय ! आज इस ग्राम में इन्द्र
महोत्सव यावत् गिरियात्रा नहीं हैं कि जिस से ये सब लोगों एक दिशि में जाते हैं. परंतु 12 अहो देवानुप्रिय ! श्री श्रमण भगतत महावीर स्वामी यहां आये हैं यहां पधारे हैं और यहां ही राजगृही ।
अनुवादेकालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी
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*प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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