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सूत्र
अर्थ
48 पटनांग ज्ञाना धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्तन्य 46
विरइ ॥ ८५ ॥ कालेणं तेणंसमएणं समणे भगवं महावीरे पुन्त्राणुपुवि चरमाणे गामा गामं दूइजमाणे, सुहंसुहेणंविहरमाणे जेणामेव रागगिहेनयर गुणसिलए चेइए जाव विहरइ ॥ ८६ ॥ तरणं से रायगिहेनयरे सिंघाडम जाव महयाजणसद्देइवा जाव बहवे उग्गे भोगे जाव रायगिहस्सणयरस्त मज्झंमज्झेणं एगदिसिं एगामिमुहा णिग्गच्छति ॥ इमं चणं से मेहकुमारे उपिपासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थ एहिं जा माणुस कामभोगे भुंजमाणे रायमग्गंच उलोएमाणे २ एवं चणं विहरइ ॥ मेह कुमारे ते बहवे उग्गे भोगे जाव एगदिसाभिमुहं णिगच्छमाणे पासइ २ ता
( उमकाल उस समय में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पूर्वानुपूर्वी चलते ग्रामानुग्राम विचरते राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में यथा प्रतिरूप अवग्रह याचकर विचरने लगे ॥ ८६ ॥ उससमय में राजगृह नगर में शृंगाटक { यावत् राजमार्ग में बहुत लोगों का कोलाहल होनेलगा और उग्र कुल के भोग कुल के यावत् बहुत लोगों राजगृह नगर की बीच में से होते हुए एक दिशा तरफ नीकलने लगे. इस समय मेघकुमार अपने महल पर रहाहुबा रंग ध्वनि सहित यावत् मनुष्य संबंधी काम भोगभोगता हुवा व राजगृह नगरका अवलोकन कहता हुवा विरता था. उस समय में बहुत उग्र कुलवाले भोग कुलवाले यावत् राजगृह नगरी बीच में होकर जाते हुवे देखकर
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उत्क्षिप्त (मधे कुमार ) का प्रथम अध्ययन 4
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