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सूत्र
- पांङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का द्वितीय श्रुतस्कन्ध
अझ
तइवग्गस्त एवं खलु जंबु ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव संपतेणं तइयरसवग्गरस वउंपण्णं अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा- पढमे अझयणे जाव चउपण्णं तिमे "1 जतिणं भंते 1 समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं धम्मकाणं तइयवग्गस्स चउपण्णं अज्झयणा पण्णत्ता | पढमरणं भंते ! अझयणरस समणेण भगवया महावीरेणं जाब संपते के अट्ठे पण्णत्ते ? ॥ २ ॥ एवं खलु जंबु ! तेणं कालेणं तुणं समएणं रायगिहे णयरे गुणसिलए बेइए, सामी समोसढे परिसाणिग्गया, जाव पज्जुवास ॥ ३ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अलादेवी धरणीए रायहाणीए अलावडिस भवणे
अलंसि
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*45* तीसरा वर्ग 4
अब तीसरा वर्ग कहते हैं अहो अम्बू ! श्री श्रमण भगवंत मडावीर स्वामीने तीसरे वर्ग के चौपन्न अध्ययन कडे } हैं. पहिले से चौपन्न पर्यंत जानना ॥ १ ॥ अहो भगवन्! श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने धर्म कथा के तीसरे वर्ग चौपन अध्ययन जब कड़े तब पहिला अध्ययन का क्या अर्थ कहा ? ॥ २ ॥ अहो जम्बू ! उस काल उस समय में राजगृही नेगरी के गुणशील उद्यान में भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारे, } 20 {दा वंदन करने को निकली घावत् पर्युपासना करने लगे. ॥ ३ ॥ उस काल उस समय में अलादेवी धरणी राज्यधानी में अलावतंसक भवन में अलं सिंहासन पर बगैरह काली जैसे गमा जानन्स. याबत
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