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बलबंचागयहाणीए सुंभावर्डिसए भवणे सुभ सिंहाससि कालीगमएणं जाव णविहिं उवदेसेत्ता जाव पडिगया॥ ५ ॥ पुत्वभव पुच्छा? सावत्थीए गयरीए, कोट्ठग चेहए, जियसत्तूराया, सुंभगाहावती मुंभेसिरी भारिया, मुंभादारिया, सेसं जहा कालिए गवरं अडुट्ठाति पालिओवमाइ ठिइओएवं खलु जबु! निक्खेवगो अझयणस्साएवं सेसावि चत्तारि अझयणा ॥ सावत्थीए, गवरं माया पिया ध्या सरिस नामया ॥ एवं खलु जंबु निक्खवओ वीयवग्गरस उक्खेवओ। वितियवगो सम्मत्ती ॥ २ ॥ ५ ॥
अनुवादक-शासनमचारी मुनि श्री अमोलसपि
भवन से शुभसिंहासन पर बैठी वगैरह सब गमा कालीदेवी जैसे जानना. या नृत्य बताकर पीछीगई ॥५॥ उसके पूर्वभवकी मौतम स्वामीने पृच्छा क्रीं श्रावस्ती नगरी कोष्टक उद्यान, जितशत्रु राजा, शुभं गाथापति, शुंभ श्री भार्या और शुंभ कन्या. शेष सब काली जैसे जानना. विशेष यहां इसकी स्थिति साडेतीन पस्यो. पप की जानना. अहो जम्बू ! ऐसे ही इस अध्ययन का निक्षेपा जानना, ऐसे ही शेष चार अध्ययन श्रावस्ती नगरी के जामना. मातपिता के नाम उस पुत्री के नाम असं जानना. अहो जम्बू ! ऐमेही दूसरा वर्ग का निक्षेप कहा. या दूसरा वर्ग संपूर्ण हुवा ॥ २ ॥
-राबाहादर हाका मुखदेवमयर यजीवासाप्रसादजी.
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