________________
पांडवाताधर्मकथा का द्वितीय शुसस्कन्ध 48M
॥ द्वितीय-वर्ग ॥ जतिणं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दोच्चस्स घग्गरस उक्खेवओ ॥ ॥ एवं खलु जबु ! समगेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दोच्चस्स वग्गस्स पंचज्झयणा पण्णता, तंजहा-सुंभा, निसुंभा, रंभा, निरंभा, मंदणा, ॥ २ ॥ जतिणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरणं जाव संपत्तेणं धमकहाणं दोच्चस्स वग्गरस पंचज्झयणा पण्णत्ता ॥दोच्चस्सणं भंते ! वग्गरस पढमस्स अझयणस्स के अटे पण्णत्ते ? ॥ ३ ॥ एवं खलु जंबु तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसिलए चेइए, सामी समोसढे, परिसाणिग्गया जाव परजुवासति ॥ ४ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सुंभादेवी
श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने पहिला वर्ग का उक्त अर्थ कहा तब दूसरा वर्ग का क्या अर्थ कहा ? अहो जम्बू! दूसरे वर्ग के पांच अध्ययन कहें जिन के नाम-शंभा, निझुंभा, रंभा, निरंभा । व मदना ॥२॥ जब श्री श्रमण भगवंत पहावीर स्वामीने दूसरे वर्ग के पांच अध्ययन कडे तब उन में से प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा?॥३॥ अहो जम्बू ! उस काल उस समय में राजगा नगर था गुणशील ज्यान था. श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे. परिषदा बंदना करने को आई, यावत् । पर्युपासना करने लगी ॥४॥ उस काल उस समय में शुभा देवी पलचंचा राज्यधानी में शुभावसक
61- दूसरा वर्ग 4
402
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org