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सूत्र
41 पटांग ज्ञाताधर्मकथा का द्वितीय श्रुतस्कंध 418+
आमलकप्पा गयरी : अंबसालवणे चेइए, जियसचूराया, राईगाहावती, राईसिरी भारिया राईदारिया || ५ | पासस्स समोसरणं, राईदारिया जहेब काली तहेव निक्खता, तहेव सरीरपाउलिया, तंचत्र सव्वं जाव अंतं कार्हिति एवं खल जंबु ! बीयरसज्झयणस्स निक्खेत्रओ १ ॥ २ ॥ जतिणं भंते ! तयागणरस उक्खवओ एवं खलु नंबु ! रायागिहे जयरे; गुणसिलए चेइए एवं अहेब राई तत्र रयणीवि, नवरं अमलकप्पा जयरी, रयणीगाहावती रवणसिरी भारिया, रयणी दारिया सेसं तहेव जाव अंतं काहिति ॥ १ ॥ ३ ॥ विज्जुवि आमलकप्पा जयरी विज्जुगाहावई, विज्जुसिरी भारिया विज्जुदारिया,
थीं, अम्बशाल उद्यान था. जितशत्रू राजा था, राजी गाथापति, राजि श्री उन की स्री व उन को राजी [ नामकी कन्या थी ॥ ५ ॥ पार्श्वनाथ स्वामी का पधारना हुवा, और काली की तरह उसने भी दीक्षा जंगी{कार की. बेसे ही शरीर का प्रद्वेष करने लगी यावत् अंत करेगी. अहो जम्बू ! यह दूसरा { अध्ययन का निक्षेपा हुवा ॥ १ ॥ २ ॥
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अब तीसरा अध्ययनका निक्षेप कहते हैं. राजगृह नगर गुणशील उद्यान, वगैरह राजीने से रजनीका जानना | विशेषमें पूर्व मन में अमलकप्पा नगरी, रजनी गाथा पति, रजन श्री मार्या व रजनी पुत्री यावत् अंत करेगी || १ || ३ ||
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488+ पहिला वर्ग का तीसरा अध्ययन
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