________________
सूत्र
अर्थ
*पष्टङ्ग इताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कंध MP
असंच बहु काली डिसग भवनवासीणं असुरकुमाराणं देवाणय देवीणय आहेत्रचं जाव विहरति ॥ २८ ॥ एवं खलु गोयमा ! कालीए देवीए सा दिव्या देवड्डी ३ लापता अभिसमंण्णागया ॥ २९ ॥ कालीएणं भंते! देवीए के तिथं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! अड्डाइज्जाई पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥ ३० ॥ कालीणं भंते ! देवी ताओ देवलोगाओ अनंतरंउवहित्ता कहिंगंच्छिहिति कहि उवत्रज्जिर्हिति ? गोयमा ! महाविदे देवासे सिज्झिहिति ॥ ३१ ॥ एवं खलु जंबु ! समणेणं भगवया महाबीरेणं जाब संपत्तेणं पढमस्लवग्गस्स पढमशेयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते ॥ तिमि ॥
चार हजार सामानिक देव यावत् अन्य बहुत कालावतंसक भुवनवासी असुरकुमार देव व देवियों का अघिपत्तिपना करती हुई यावत् विचरती है ॥ ६८ ॥ अहो गौतम ! काली देवी को इस तरह ऐसी दीव्य ऋद्धि माप्त हुई है ।। २९ ॥ अहो भगवन् ! काली देवी की स्थिति कितनी कही ? अहो गौतम ! अढाई पल्योपम की स्थिति कही ॥ ३० ॥ अहो भगवन् ! काली देवी वहां से निकलकर कहां जावेगी कहां उत्पन्न होगी ? अहो गौतम ! महा विदेह क्षेत्र में यावत् सीझेंगी, तूझेंगी व सब दुःखों का अंत करेगी '॥ ३१ ॥ अहो जम्बू ! श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने ज्ञाता सूत्र के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
488+ पहिला वर्ग का पहिला अध्ययन 48
७७६
www.jainelibrary.org